देवकृतस्यैनसोऽवयजनमसि मनुष्यकृतस्यैनसोऽवयजनमसि पितृकृतस्यैनसोऽवयजनमसि आत्मकृतस्यैनसोऽवयजनमसि एनस एनसोऽवयजनमसि। यच्चाहमेनो विद्वांश्चकार यच्चाविद्वास्तस्य सर्वस्यैनसोऽवयजनमसि॥
अनुवाद:- वेदों को बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि हे पूर्ण ब्रह्म आप सत्यभक्ति करने वाले (देव कृतस्य) भद्र पुरूष सन्त/ऋषि द्वारा किए हुए(एनसः) पाप के (अवयजनम्) क्षमा अर्थात् विनाश करने वाले (असि) हो। (मनुष्य कृतस्य) साधारण व्यक्ति के किए हुए (एनसः) पाप के (अवयजनम्) विनाश करने वाले (असि) हो। सत्यभक्ति चाहे पिता करे उस (पितृकृतस्य) पिता के किये हुए (एनसः) पाप के (अवयजनम्) विनाश करने वाले (असि) हो। शास्त्रा अनुकूल साधना चाहे कोई स्वयं करें उसके (आत्म कृतस्य) अपने किये हुए (एनसः) पाप के (अवयजनम्) विनाश करने वाले (असि) हो और तो और आप (एनसः एनसः) पाप के पाप अर्थात् घोर पाप के (अवयजनम्) विनाश अर्थात् क्षमा करने वाले (असि) हो। (यत्) जो सत्यभक्ति करने वाला (एनः) पाप चाहे (विद्वान्) शिक्षित अर्थात् पंडित या (अविद्वान्) अशिक्षित (चकार) करे (तस्य) उसके (च) तथा (सर्वस्य) सर्व सत्यभक्ति स्तुति करने वालों के (एनसः) पाप के (अवयजनम्) विनाश करने वाले (असि) हो।(13)
आप (परमेश्वर) देवताओं से किए गए पापों से मुक्त करने वाले हैं,
आप मनुष्यों से किए गए पापों से मुक्त करने वाले हैं,
आप पितरों (पूर्वजों) से किए गए पापों से मुक्त करने वाले हैं,
आप आत्मा द्वारा किए गए पापों से भी मुक्त करने वाले हैं।
आप समस्त प्रकार के पापों से मुक्त करने वाले हैं।
जो भी पाप मैंने जानबूझकर किया हो या अनजाने में किया हो,
उन सब पापों से आप मुझे मुक्त करने वाले हैं।