उशिक् असि कविर अंघारिः असि बम्भारिः अवस्यूः असि दुवस्वान् शुन्ध्यूः असि मार्जालीयः सम्राट असि कृशानुः परिषद्यः असि पवमानः नभः असि प्रतक्वा मृष्टः असि हव्यसूदनः ऋतधामा असि स्वर्ज्योतिः
अनुवाद:- (उशिक्) जो पूर्ण शांतिदायक (असि) है। वह (अंघारिः) पाप का शत्रु अर्थात् पाप विनाशक (कविर्) कबीर (असि) है। (दुवस्वान्) दो स्थानों पर वास करता हुआ। दुःखदाई काल लोक में रहने वालों के (बम्भारिः) कर्म बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ (अवस्यूः) रक्षा के लिए तुरन्त आने वाला (असि) है। (शुन्ध्यूः) पवित्र करने वाला वायु के तुल्य (असि) है। (परिषद्यः) सभा में अर्थात् ओंकार ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्मण् (ब्रह्म,ब्रह्मा,विष्णु,शिव तथा देवी,देवताओं आदि की सभा है में जैसे चूहों की सभा में) (मार्जालीयः) बिलाव की तरह (सम्राट) शक्तिशाली राजाधिराज अर्थात् कुल मालिक (असि) है (कृशानुः) सर्व ऊर्जा स्रोत परमेश्वर (पवमानः) वायु अर्थात् प्रत्येक जीव का प्राणाधार (असि) है (नभः) आकाश के गुण शब्द रूप में अविनाशी (असि) है (प्रतक्वा) जगत को त्यागने वाला अन्तर्यामी (मृष्टः) जाना माना अर्थात् सर्वविदित (असि) है (हव्यसूदनः) हवन में आहुति दिए घी का जैसे प्रारूप बदल जाता है अर्थात् अधिक लाभ दायक हो जाता है ऐसे भक्ति से भक्त के गुण बदलने वाला (स्वर्ज्योतिः) स्वयं प्रकाशित (ऋतधामा) सत्यलोक में रहने वाला (असि) है।
उशिगसी = (सम्पूर्ण शांति दायक) कविरंघारिसि = (कविर्) कबिर परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक कबीर है। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर (असि) है।
यानी कबीर परमात्मा पापों का शत्रु अर्थात पाप नाशक और बंधनों के शत्रु हैं अर्थात जन्म-मृत्यु के बंधन से जीव को मुक्त कर सतलोक की प्राप्ति कराते हैं, जहां जाने के पश्चात जीव को परम शांति की प्राप्ति होती है।