अग्नेः तनुः असि। विष्णवे त्वा सोमस्य तनूः असि। विष्णवे त्वा अतिथ्येः अतिथ्यम् असि विष्णवेत्वा श्येनाय त्वा सोम भृते विष्णवे त्वा अग्नये त्वा रायः पोषदे विष्णवे त्वा (1)
अनुवाद (हिन्दी में):- (अग्नेः) हे परमेश्वर आपका (तनूः) शरीर (असि) हे अर्थात् हे परमेश्वर आप सशरीर हैं। (विष्णवे) सर्व का पालन करने के लिए (त्वा) आप (सोमस्य) अमर परमेश्वर का (तनूः) शरीर (असी) है। (त्वा) वह परमेश्वर (विष्णवे) तत्व ज्ञान से परिपूर्ण करने के लिए अर्थात् तत्व ज्ञान से आत्माओं का पोषण करने के लिए (अतिथ्ये) अतिथी रूप में आता है उस अतिथी रूप में आए परमेश्वर का (अतिथ्यम्) अतिथी सत्कार करना योग्य है अर्थात् वही तत्वदर्शी सन्त रूप में प्रकट परमेश्वर पुज्य है। (त्वा) वह परमेश्वर (विष्णवे) तत्व ज्ञान द्वारा आत्माओं को पोषण करने के लिए (श्येनाय) अलल पक्षी की तरह शिघ्र गामी होकर यहाँ आकर अज्ञान निन्द्रा में सोए हुओं को जगाने वाला है। (त्वा) वह परमेश्वर आप (सोमभृते) सतपुरूष की भक्तिरूपी अमृत से परिपूर्ण करने वाला (त्वा) आप (विष्णवे) पालन के लिए विष्णु रूप से प्रसिद्ध है। (अग्नेय) परमेश्वर के लिए कोई भी कार्य असम्भव नहीं है वह परमेश्वर (त्वा) आप (रायःपोषदे) भक्ति रूपी धन से परिपूर्ण करने वाला (विष्णवे) व पालन करने के लिए पालन कर्त्ता है।
भावार्थः इस मन्त्र में वेद ज्ञान दाता ने पूर्ण परमात्मा की महिमा व स्थिति बताई है। इसमें दो बार साक्षी दी है कि परमेश्वर सशरीर है। उस परमेश्वर अर्थात् अमर पुरूष का अन्य शरीर भी है जिसको धारण करके इस लोक में अतिथी अर्थात् महमान रूप में आता है। अतिथी का अर्थ है जिस के आने की तिथी पूर्व निर्धारित न हो। बिना निरधारित तिथी को आने वाले को अतिथी कहते हैं। वह परमात्मा अतिथी रूप में सन्त रूप धारण करके तत्वज्ञान द्वारा सर्व आत्माओं को यर्थाथ भक्ति साधना बता कर भक्तिरूपी धन से धनी बनाता है। वह अलल पक्षी की तरह शीघ्र गामी है। वही पूजा के योग्य है।}