यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 8

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यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 8 - कविर्देव का शरीर नाड़ियों से बना हुआ नहीं है

सः परि अगात् शुक्रम् अकायम् अव्रणम् अस्नाविरम् शुद्धम् अपापविद्धम् कविः मनीषी परिभूः स्वयम्भूः याथातथ्यतः अर्थान् व्यदधात् शाश्वतीभ्यः समाभ्यः।

(सः) वह (परि अगात) पूर्ण रूप से अवर्णनीय सर्वशक्तिवान पूर्ण ब्रह्म अविनाशी है। (अस्नाविरम्) बिना नाड़ी के शरीर युक्त है (शुक्रम) वीर्य से बने (अकायम्) पंचतत्व के शरीर रहित (अव्रणम्) छिद्र रहित व चार वर्ण, ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्राी, शुद्र से भिन्न (शुद्धम्) पवित्रा (अपाप) निष्पाप (कविर) कविर्देव अर्थात् कबीर परमात्मा है, वह कबीर (मनीषी) महाविद्वान है जिसका ज्ञान (अविंद्धम्) अछेद है अर्थात् उनके ज्ञान को तर्क-वितर्क में कोई नहीं काट सकता वह (परिभूः) सर्व प्रथम प्रकट होने वाला प्रभु है जो सर्व प्रथम प्रकट होने वाला तथा सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाला प्रभु है (व्यदधात्) नाना प्रकार के ब्रह्मण्ड़ों को रचने वाला (स्वयम्भूः) स्वयं प्रकट होने वाला (याथा तथ्यतः) जैसा कि प्रमाणित है तथा (अर्थान्) सही अर्थों में अर्थात् वास्तव में (शाश्वतीभ्यः) जो उस प्रभु के विषय में लिखी अमर वाणी में प्रमाण है वह वैसा ही अविनाशी पूर्ण शक्ति युक्त अमृत वाणी से अर्थात् शब्द शक्ति से समृद्ध (समाभ्यः) पूर्ण ब्रह्म के समान कांति युक्त है अर्थात् पूर्ण परमात्मा के समान आभा वाला स्वयं कबीर ही पूर्ण ब्रह्म है।

भावार्थ:- कविर्देव का शरीर नाड़ियों से बना हुआ नहीं है। यह परमेश्वर अविनाशी है। इसक शरीर माता-पिता के संयोग से वीर्य से बना पाँच तत्व का नहीं है। यह परमात्मा कविर् है वही सर्वज् है वह महाविद्वान है उसके ज्ञान को तर्क-वितर्क में कोई नहीं काट सकता अर्थात् उसका ज्ञान अछेद है। वह स्वयं प्रकट होता है, सर्व प्रथम प्रकट होने वाला है, माँ से जन्म नहीं लेता। सर्व ब्रह्मण्डों क रचनहार, पूर्ण शक्ति युक्त अमृृत वाणी से अर्थात् शब्द शक्ति का धनी व कांति युक्त है।

कुछ पाठक केवल एक शब्द ‘अकायम‘ को पढ़ कर निर्णय कर लेते हैं कि परमात्मा काया रहित है। परंतु इसके साथ.2 ‘स्वयंभू‘ शब्द भी लिखा है जिसका अर्थ है स्वयं प्रकट होने वाला। भावार्थ है कि परमात्मा सशरीर है उसका शरीर पांच तत्व से नहीं बना है। उस पूर्ण परमात्मा का बिना नाड़ी का तेजपंुज का शरीर बना है। इसलिए यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्रा एक में लिखा है कि ‘अग्ने तनूः असि‘।

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