वायुः अनिलम् अमृतम् अथ इदम् भस्मान्तम् शरीरम् ॥ ओ३म् क्रतो स्मर क्लिबे स्मर कृतम् स्मर ॥१५ ॥
वेदों को बोलने वाला कह रहा है कि ओम् (ॐ) मन्त्र का समरण काम करते-करते कर, विशेष कसक के साथ समरण कर, मानव जीवन का मूल कर्तव्य समझ कर समरण कर।
श्वांस-उश्वांस स्मरण करके शरीर के अंत के बाद यानि मृत्यु के पश्चात् ओम् जाप से होने वाला (अमृतम्) अमरत्व यानि ब्रह्म लोक प्राप्त होगा।