भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि, धीयो यो न: प्रचोदयात्
(भूः) स्वयंभू परमात्मा पृथ्वी लोक को (भवः) गोलोक आदि भवनों को वचन से प्रकट करने वाला है (स्वः) स्वर्गलोक आदि सुख धाम हैं। (तत्) वह (सवितुः) उन सर्व का जनक परमात्मा है। (वरेणीयम) सर्व साधकों को वरण करने योग्य अर्थात् अच्छी आत्माओं के भक्ति योग्य है। (भृगो) तेजोमय अर्थात् प्रकाशमान (देवस्य) परमात्मा का (धीमहि) उच्च विचार रखते हुए अर्थात् बड़ी समझ से (धी यो नः प्रचोदयात) जो बुद्धिमाना के समान विवेचन करता है, वह विवेकशील व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी बनता है।
भावार्थ: परमात्मा स्वयंभू जो भूमि, गोलोक आदि लोक तथा स्वर्ग लोक है उन सर्व का सृजनहार है। उस उज्ज्वल परमेश्वर की भक्ति श्रेष्ठ भक्तों को यह विचार रखते हुए करनी चाहिए कि जो पुरुषोत्तम (सर्व श्रेष्ठ परमात्मा) है, जो सर्व प्रभुओं से श्रेष्ठ है, उसकी भक्ति करें जो सुखधाम अर्थात् सर्वसुख का दाता है।