यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र 25

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कबीर परमेश्वर स्वयं अपना ज्ञान देने के लिए पृथ्वी पर आते हैं 

यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र 25

समिद्धोऽअद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः।
आ च वह मित्रमहश्चिकित्वान्त्वं दूतः कविरसि प्रचेताः।।25।।

समिद्धः-अद्य-मनुषः-दुरोणे-देवः-देवान्-यज्-असि- जात-वेदः-आ- च-वह- मित्रमहः-चिकित्वान्-त्वम्-दूतः- कविर्-असि-प्रचेताः।

अनुवाद - (अद्य) आज अर्थात् वर्तमान में (दुरोणे) शरीर रूप महल में दुराचार पूर्वक (मनुषः) झूठी पूजा में लीन मननशील व्यक्तियों को (समिद्धः) लगाई हुई आग अर्थात् शास्त्रा विधि रहित वर्तमान पूजा जो हानिकारक होती है, अग्नि जला कर भस्म कर देती है ऐसे साधक का जीवन शास्त्राविरूद्ध साधना नष्ट कर देती है। उसके स्थान पर (देवान्) देवताओं के (देवः) देवता (जातवेदः) पूर्ण परमात्मा सतपुरुष की वास्तविक (यज्) पूजा (असि) है। (आ) दयालु, (मित्रमहः) जीव का वास्तविक साथी पूर्ण परमात्मा के (चिकित्वान्) स्वस्थ ज्ञान अर्थात् यथार्थ भक्ति को (दूतः) संदेशवाहक रूप में (वह) लेकर आने वाला (च) तथा (प्रचेताः) बोध कराने वाला (त्वम्) आप (कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर) कबीर (असि) है।

भावार्थ:- जिस समय भक्त समाज को शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण (पूजा) कराया जा रहा होता है। उस समय कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्व ज्ञान को प्रकट करता है।

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