यदि क्षितायुर्यदि वा परेतो यदि मृत्योरन्तिकं नीत एव।
तमा हरामि निऋतेरूपस्थादस्पार्षमेनं शतशारदाय।।2।।
पदार्थ:- (यदि क्षितायुः) यदि किसी रोगी की जीवन शक्ति समाप्त हो, (यदि वा परेतः) यदि वह सीमा से भी परे हो गया है, अर्थात् परलोक चला गया है(यदि मृत्योः अन्तिकं) यदि वह मृत्यु के सन्निकट (नीतः एव) चला गया है, तो भी (तम्) उसे मैं (निकृतेः उपस्यात् आ हरामि) भारी कष्टप्रद रोग के पंजे से मुक्त कराऊं तथा (एनम्) उसे (शत-शारदाय) शत वर्ष के जीवन हेतु (अस्पार्षम्) बल-सम्पन्न करूं।।2।।
भावार्थ:- यदि रोगी की जीवन शक्ति समाप्त हो रही है और उसका रोग सीमा को पार कर गया है तब भी परमात्मा उसे इस कष्टप्रद रोग से मुक्त कर शत वर्ष का जीवन दे सकता है।।2।।