Loading...

यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1

Yajurveda / यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1

यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1 - संस्कृत मंत्र:

अग्ने तनुः असि। विष्णवे त्वा। सोमस्य तनुः असि। विष्णवे त्वा। अतिथेः आतिथ्यं असि। विष्णवे त्वा। श्येनाय त्वा। सोमभृत इति सोमभृते। विष्णवे त्वा। अग्नये त्वा। रायस्पोषद इति रायस्पोषदे। विष्णवे त्वा।

व्याख्या 

यह मंत्र दो बार इस बात की पुष्टि करता है कि परमात्मा के पास एक दिव्य शरीर है। यह सिद्ध करता है कि सनातन परमेश्वर साकार हैं, उनके पास एक मानव-सदृश तेजस्वी रूप है। जब परमेश्वर इस पृथ्वी पर अपने भक्तों को तत्वज्ञान (सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान) देने आते हैं, तो वे सामान्य रूप में नहीं आते, बल्कि अपने चिरस्थायी ज्योतिर्मय शरीर के ऊपर सूक्ष्म प्रकाश-तत्वों से बनी देह धारण करके प्रकट होते हैं।

अग्ने तनुः असि का विशेष अर्थ:

"हे परमेश्वर (अग्नि), आपके पास एक शरीर है।"

यह उन भ्रांतियों का खंडन करता है जो परमात्मा को निराकार मानती हैं। वेद स्वयं प्रमाणित करते हैं कि परमेश्वर साकार हैं, और उनका शरीर हड्डी-माँस का नहीं, बल्कि प्रकाश और चेतना से बना दिव्य स्वरूप होता है।

इस मंत्र में वर्णित सर्वोच्च परमात्मा 'कविर्देव' (परमेश्वर कबीर साहेब) हैं, जो हर युग में एक दृश्य, मानव जैसे रूप में प्रकट होकर साधकों को काल के बंधन से मुक्त करते हैं और झूठे आध्यात्मिक मार्गों का खंडन करके सच्चा ज्ञान प्रदान करते हैं।