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यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15

Yajurveda / यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15

अग्ने: तनू: असि। वाच: विसर्जनम्। देववीतये त्वा गृणामि। बृहद्ग्रावेति बृहद्ग्रावा: असि। वानस्पत्य: स:। इदम् देवेभ्य: हवि:। शमीष्व शमिष्व। सुशमीति सुशमि। हविष्कृत् हविःकृत्। आ इहि।


"अग्ने: तनू: असि" यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15 का अर्थ है — "हे अग्नि (परमात्मा), आपकी एक देह (शरीर) है।"

शब्दों का अर्थ:

  • अग्ने: "अग्नि" का संबोधन रूप है, जो सामान्य रूप से अग्नि (आग) को दर्शाता है, लेकिन संत रामपाल जी महाराज द्वारा दिए गए सत्य वेदज्ञान के अनुसार, यह शब्द परमेश्वर (Supreme God) का प्रतीक है — वह ईश्वर जो सभी शक्तियों का मूल स्रोत है।
  • तनुः: इसका अर्थ है शरीर या देह
  • असि: इसका अर्थ है "हो" या "तुम हो"

इस प्रकार, "अध्याय 1 मंत्र 15" का शाब्दिक अर्थ हुआ — "हे अग्नि (परमेश्वर), आपकी एक देह है।"

विस्तृत व्याख्या:

संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, यह मंत्र यह स्पष्ट करता है कि परमात्मा निराकार नहीं, बल्कि साकार हैं। उनके पास एक दिव्य मानवरूप शरीर है। जब परमेश्वर इस संसार में अपने भक्तों को तत्वज्ञान देने हेतु प्रकट होते हैं, तब वे किसी साधारण रूप में नहीं आते, बल्कि अपने तेजस्वी, वास्तविक स्वरूप के ऊपर एक हल्के प्रकाश-पुंजों से बना दिव्य शरीर धारण करके प्रकट होते हैं।

वेद प्रमाणित करते हैं कि परमेश्वर का एक दिव्य, दृश्य शरीर होता है, और वे स्वयं समय-समय पर प्रकट होकर जीवों को काल के बंधन से मुक्त करते हैं।