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प्र कविर्देव - ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 20 मन्त्र 1

The Divine Name "Kavir Dev" in the Vedas / प्र कविर्देव - ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 20 मन्त्र 1

कविर्देव परमात्मा अच्छी आत्माओं (दृढ़ भक्तों) को ज्ञान देता है

ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 20 मन्त्र 1

प्र कविर्देव वीतये अव्यः वारेभिः अर्षति साह्नान् बिश्वाः अभि स्पृस्धः

सरलार्थ:- (प्र) वेद ज्ञान दाता से जो दूसरा (कविर्देव) कविर्देव कबीर परमेश्वर है, वह विद्वानों अर्थात् जिज्ञासुओं को, (वीतये) ज्ञान धन की तृप्ति के लिए (वारेभिः) श्रेष्ठ आत्माओं को (अर्षति) ज्ञान देता है। वह (अव्यः) अविनाशी है, रक्षक है, (साह्नान्) सहनशील (विश्वाः) तत्वज्ञान हीन सर्व दुष्टों को (स्पृधः) अध्यात्म ज्ञान की कृपा स्पर्धा अर्थात् ज्ञान गोष्ठी रूपी वाक् युद्ध में (अभि) पूर्ण रूप से तिरस्कृत करता है, उनको फिट्टे मुँह कर देता है।

विशेष:-

  • (क) इस मन्त्र के अनुवाद में आप फोटोकापी में देखेंगे तो पता चलेगा कि कई शब्दों के अर्थ आर्य विद्वानों ने छोड़ रखे हैं जैसे = ’’प्र’’ ’’वारेभिः’’ जिस कारण से वेदों का यथार्थ भाव सामने नहीं आ सका।
  • (ख) मेरे अनुवाद से स्पष्ट है कि वह परमात्मा अच्छी आत्माओं (दृढ़ भक्तों) को ज्ञान देता है, उसका नाम भी लिखा है:- ’’कविर्देव’’। हम कबीर परमेश्वर कहते हैं।