भद्रा वस्त्रा समन्या3वसानो महान् कविर्निवचनानि शंसन्।
आ वच्यस्व चम्वोः पूयमानो विचक्षणो जागृविर्देववीतौ।।5।।
भद्रा वस्त्रा समन्या वसअनः महान् कविर् निवचनानि शंसन् आवच्यस्व चम्वोः पूयमानः विचक्षणः जागृविः देव वीतौ
अनुवाद:- (विचक्षणः) चतुर व्यक्तियों ने (आवच्यस्व) अपने वचनों द्वारा पूर्णब्रह्म की पूजा को न बताकर आन उपासना का मार्ग दर्शन करके अमृत के स्थान पर (पूयमानः) आन उपासना {जैसे भूत-प्रेत पूजा, पित्तर पूजा, तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव शंकर) तथा ब्रह्म-काल तक की पूजा} रूपी मवाद को (चम्वोः) आदर के साथ आचमन करा रहे गलत ज्ञान को (भद्रा) परमसुखदायक (महान् कविर्) पूर्ण परमात्मा कबीर (वस्त्रा) सशरीर साधारण वेशभूषा में ‘‘अर्थात् वस्त्र का अर्थ है वेशभूषा, संत भाषा में इसे चोला भी कहते हैं, चोला का अर्थ है शरीर। यदि किसी संत का देहान्त हो जाता है तो कहते हैं कि चोला छोड़ गए‘‘ (समन्या) अपने सत्यलोक वाले शरीर के सदृश अन्य शरीर तेजपुंज का धारकर (वसानः) आम व्यक्ति की तरह जीवन जी कर कुछ दिन संसार में रह कर (निवचनानि) अपनी शब्दावली आदि के माध्यम से सत्यज्ञान (शंसन्) वर्णन करके (देव) पूर्ण परमात्मा के (वीतौ) छिपे हुए सर्गुण-निर्गुण ज्ञान को (जागृविः) जाग्रत करते हैं।
भावार्थ:- शास्त्रविधि विरूद्ध साधना रूपी मवाद अर्थात् घातक साधना पर आधारित भक्त समाज को कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान समझाने के लिए यहाँ संसार में प्रकट होता है। उस समय अपने तेजोमय शरीर पर अन्य शरीर रूपी वस्त्रा (हलके तेज का) पहन कर आता है। (क्योंकि परमेश्वर के वास्तविक तेजोमय शरीर को चर्म दृष्टि से नहीं देखा जा सकता।) कुछ दिन आम व्यक्ति जैसा जीवन जीकर लीला करता है तथा परमेश्वर को (अपने को) पाने वाले ज्ञान को उजागर करता है।