शिशुं जज्ञानं हर्यतं मृजन्ति शुम्भन्ति वुि मरूतो गणेन।
कविर्गीभिः काव्येना कविः सन्त्सोमः पवित्रमत्येति रेभन्।।17।।
शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वहिन मरूतः गणेन।
कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्रम् अत्येति रेभन्।।
अनुवाद - पूर्ण परमात्मा (हर्य शिशुम्) विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में (जज्ञानम्) जान बूझ कर प्रकट होता है तथा अपने तत्वज्ञान को (तम्) उस समय (मृजन्ति) निर्मलता के साथ (शुम्भन्ति) उच्चारण करता है। (वुिः) प्रभु प्राप्ति की लगी विरह अग्नि वाले (मरुतः) भक्त (गणेन) समूह के लिए (काव्येना) कविताओं द्वारा कवित्व से (पवित्रम् अत्येति) अत्यधिक वाणी निर्मलता के साथ (कविर गीर्भि) कविर वाणी अर्थात् कबीर वाणी द्वारा (रेभन्) ऊंचे स्वर से सम्बोधन करके बोलता है, (कविर् सन्त् सोमः) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष ही संत अर्थात् ऋषि रूप में स्वयं कविर्देव ही होता है। परन्तु उस परमात्मा को न पहचान कर कवि कहने लग जाते हैं। परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम कविर्देव है।
भावार्थ - ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त नं. 96 मन्त्र 16 में कहा है कि आओ पूर्ण परमात्मा के वास्तविक नाम को जाने इस मन्त्रा 17 में उस परमात्मा का नाम व परिपूर्ण परिचय दिया है। वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि पूर्ण परमात्मा विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में प्रकट होकर कविर्देव अपने वास्तविक ज्ञानको अपनी कबीर बाणी के द्वारा निर्मल ज्ञान अपने हंसात्माओं अर्थात् पुण्यात्मा अनुयायियों को कविताओं, लोकोक्तियों के द्वारा सम्बोधन करके अर्थात् उच्चारण करके वर्णन करता है। इस तत्वज्ञान के अभाव से उस समय प्रकट परमात्मा को न पहचान कर केवल ऋषि व संत या कवि मान लेते हैं वह परमात्मा स्वयं भी कहता है कि मैं पूर्ण ब्रह्म हूँ परन्तु लोक वेद के आधार से परमात्मा को निराकार माने हुए प्रजाजन नहीं पहचानते।
इतना स्पष्ट करने पर भी उसे कवि या संत, भक्त या जुलाहा कहते हैं। परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम कविर्देव है। वह स्वयं सतपुरुष कबीर ही ऋषि या संत रूप में होता है। परन्तु तत्व ज्ञानहीन ऋषियों व संतों गुरूओं के अज्ञान सिद्धांत के आधार पर आधारित प्रजा उस समय अतिथि रूप में प्रकट परमात्मा को नहीं पहचानते क्योंकि उन अज्ञानी ऋषियों, संतों व गुरूओं में परमात्मा को निराकार बताया होता है।