हरिः सृजानः पथ्यां ऋतस्य इयर्ति वाचम् अरिता इव नावम्।
देवः देवानाम् गुह्यानि नाम आविः कृणोति बर्हिषि प्रवाचे॥
वह परमेश्वर स्वयं साकार रूप में प्रकट होकर, सत्य मार्ग की ओर प्रेरित करने वाली अमृतवाणी द्वारा ज्ञान प्रदान करता है। जैसे कोई नाविक मनुष्य को नाव में बैठाकर नदी पार कराता है, वैसे ही परमेश्वर नाम रूपी नाव द्वारा भक्ति के मार्ग से प्राणी को संसार सागर से पार कराते हैं। वह देवों का भी देव (सर्वोच्च भगवान) प्रवचन करके यानि बोल-बोलकर गुप्त नाम (मंत्र) प्रकट करता है।
यह वेद मंत्र सिद्ध करता है कि परमेश्वर स्वयं साकार रूप में प्रकट होकर सतभक्ति का मार्ग बतलाते हैं। वह अपनी अमृतमयी वाणी द्वारा सत्य ज्ञान का प्रचार करते हैं और साधक को हरि नाम रूपी नाव में बैठाकर संसार रूपी भवसागर से पार कराते हैं।
यह परमात्मा देवों का भी देव है, जिसे वेदों में "देवः देवानाम्" कहा गया है। यह वही परमेश्वर है जो गुप्त नामों (गुह्य मंत्रों) को उसे (बर्हिषि प्रवाचे) प्रवचन करके यानि बोल-बोलकर बताता है।
यही बात श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में भी कही गई है— “ॐ तत् सत्”। इसमें 'तत्' और 'सत्' गुप्त बीज मंत्र हैं, जिन्हें केवल वही पूर्ण परमात्मा प्रकट करता है, और आज वही मंत्र संत रामपाल जी महाराज के द्वारा बताए जा रहे हैं।
पूर्ण मोक्ष केवल इन गुप्त मंत्रों के सही जाप से ही संभव है।