भगवद गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में यह कहा गया है कि सच्चा ज्ञान स्वयं परमेश्वर प्रदान करते हैं। इस श्लोक में बताया गया है कि दिव्य ज्ञान, जिसमें सृष्टि के रहस्य, आध्यात्मिक साधनाएँ और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग शामिल है, स्वयं परमात्मा अपने कमल मुख से प्रकट करते हैं। इसका अर्थ यह है कि परम सत्य (तत्वज्ञान) केवल पढ़ाई या कर्मकांडों से प्राप्त नहीं किया जा सकता, बल्कि इसे केवल वही प्राप्त कर सकता है जिसे स्वयं परमेश्वर प्रदान करें। यह पूर्णतः कविर देव (परमेश्वर कबीर) से मेल खाता है, जो सतलोक से पृथ्वी पर प्रकट हुए और अपने तत्वज्ञान द्वारा जीवों को सत्य मार्ग दिखाया। उन्होंने वेदों, गीता और अन्य शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को स्पष्ट किया तथा यह प्रमाणित किया कि कर्मकांड और काल के प्रभाव में किए गए अनुष्ठान वास्तविक मोक्ष प्रदान नहीं कर सकते।
आगे, भगवद गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में यह बताया गया है कि यह दिव्य ज्ञान तत्वदर्शी संतों के माध्यम से भी प्राप्त किया जा सकता है। एक सच्चे साधक को ऐसे तत्वदर्शी संत के पास जाकर पूर्ण समर्पण, श्रद्धा और जिज्ञासा के साथ ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। लेकिन यहाँ यह समझना आवश्यक है कि यह तत्वदर्शी संत स्वयं परमेश्वर (कविर देव) भी हो सकते हैं, जब वे मानव रूप में प्रकट होते हैं, या फिर वे संत हो सकते हैं जिन्हें परमात्मा ने नियुक्त किया हो ताकि वे इस गोपनीय तत्वज्ञान को संसार में प्रचारित करें। इतिहास गवाह है कि स्वयं परमेश्वर कबीर ने तत्वज्ञान प्रदान किया और फिर अपने अधिकृत तत्वदर्शी संतों को यह ज्ञान सौंपा, जिससे वे जीवों का मार्गदर्शन कर सकें और सत्य को उजागर कर सकें।
इस प्रकार, गीता का यह संदेश स्पष्ट रूप से प्रमाणित करता है कि परमेश्वर स्वयं पृथ्वी पर आकर तत्वज्ञान प्रदान करते हैं और वे अपने तत्वदर्शी संतों को नियुक्त करते हैं ताकि यह दिव्य ज्ञान संसार में सतत उपलब्ध रहे। केवल इन तत्वदर्शी संतों की पहचान कर उनके बताए मार्ग का अनुसरण करने से ही कोई जीव काल के जन्म-मरण चक्र से मुक्त होकर सतलोक प्राप्त कर सकता है।