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मोहम्मद बोध

Kabir Sagar / मोहम्मद बोध

अध्याय ‘‘मोहम्मद बोध’’ का सारांश

(मुसलमान धर्म की जानकारी)

कबीर सागर में ‘‘मोहम्मद बोध‘‘ 14वां अध्याय पृष्ठ 6 पर है।

धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से मुसलमान धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद को ज्ञान समझाने के बारे में प्रश्न किया कि हे बन्दी छोड़! क्या आप नबी मोहम्मद से भी मिले थे? उसने आपकी शरण ली या नहीं? यह जानने की मेरी इच्छा है। आप सबके मालिक हैं, जानीजान हैं। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को मोहम्मद धर्म की जानकारी इस प्रकार दी:- (लेखक रामपाल दास के शब्दों में।)

कबीर परमेश्वर जी ने अपनी प्यारी आत्मा धर्मदास जी को मुसलमान धर्म की जानकारी बताई जो इस प्रकार है। {पाठकों से निवेदन है कि कबीर सागर से बहुत सा प्रकरण कबीर पंथियों ने निकाल रखा है। कारण यह रहा है कि वे उस विवरण को समझ नहीं सके। उसको अपनी अल्पबुद्धि के अनुसार गलत मानकर निकाल दिया। मेरे पास एक बहुत पुराना कबीर सागर है। उसके आधार से तथा परमेश्वर कबीर जी ने अपने ज्ञान को संत गरीबदास जी को सन् 1727 (विक्रमी संवत् 1784) में प्रदान किया। संत गरीबदास जी उस समय 10 वर्ष के बालक थे। उनको कबीर परमेश्वर जी सत्यलोक लेकर गए। फिर वापिस छोड़ा। उसके पश्चात् संत गरीबदास जी ने आँखों देखा वर्णन किया। फिर मैंने (रामपाल दास) ने सर्व धर्म ग्रन्थों का इस दृष्टिकोण से अध्ययन किया कि क्या यह प्रकरण पुरातन धर्मग्रन्थों में भी है। यदि पुराने धर्मग्रन्थों (पवित्र वेदों, पवित्र गीता, पवित्र पुराण, पवित्र कुरान तथा पवित्र बाईबल जो तीन पुस्तकों का योग है - तौरत, जबूर, इंजिल) में पवित्र कबीर सागर वाला प्रकरण है तो संसार की भोली-भाली और विभिन्न पंथों में धर्म के नाम से बंटी जनता को एक सूत्र में बाँधा जा सकता है। अध्ययन से पता चला कि सर्व धर्मग्रन्थ जहाँ तक यानि जिस मंजिल तक का ज्ञान उनमें है, वह कबीर सागर से मिलता है। कबीर सागर में उन ग्रन्थों से आगे का ज्ञान भी है।

कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को बताया कि हे धर्मदास! मुसलमानों का मानना है कि बाबा आदम से मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है। यह इनका अधूरा ज्ञान है। आदम जी वाला जीव पूर्व जन्म में ऋषभ देव राजा था जिसको जैन धर्म का प्रवर्तक व प्रथम तीर्थकंर माना जाता है। मैंने (परमेश्वर कबीर जी ने) नबी मोहम्मद को यही समझाया था कि आप बाबा आदम को अपना प्रथम पुरूष मानते हो, उसी की संतान आप अपने को मानते हो। जिस समय बाबा आदम नहीं था। उस समय परमात्मा तो था। यह ज्ञान पवित्र बाईबल में उत्पत्ति ग्रन्थ में लिखा है। नबी मोहम्मद जी से पूर्व बाबा आदम की संतान में लाखों पैगम्बर हुए माने जाते हैं जिनमें से 1) दाऊद 2) मूसा 3) ईशा जी। दाऊद जी को जबूर किताब मिली, मूसा जी को तौरेत तथा ईशा जी को इंजिल पुस्तक मिली। प्रत्येक को एक ही बार में उपरोक्त पुस्तकें मिली। नबी मोहम्मद जी को कुरान शरीफ किताब मिली जो कई चरणों में कई प्रकार से प्राप्त हुई है।

जब किसी पंथ की शुरूआत होती है, किसी समुदाय के व्यक्ति द्वारा उसी समुदाय से होती है। कारण यह होता है कि परमात्मा किसी महापुरूष को इसी उद्देश्य से संसार में भेजता है कि वह मनुष्यों में फैली बुराई, कुरीतियों, शास्त्र विरूद्ध साधना को छुड़ाकर स्वच्छ तथा शास्त्रविधि अनुसार भक्ति करने वाले भक्त तैयार करे। जिस कारण से उसको अपने ही समुदाय से शुरूआत करनी होती है। रूढ़िवादी तथा स्वार्थी पंथी गुरू उस सच्चे संत का जनता को भ्रमित करके बहुत विरोध कराते हैं। उसका जीना हराम कर देते हैं। परंतु वह प्रभु का भेजा हुआ अंश होता है। इस संसार में दो शक्ति अपना-अपना कार्य कर रही हैं।

एक काल ब्रह्म है जिसको ज्योति निरंजन भी कहते हैं। वेदांती उसको ब्रह्म कहते हैं और निराकार मानते हैं। मुसलमान उसी को बेचुन (निराकार) अल्लाह कहते हैं।

दूसरी शक्ति सत्य पुरूष है जिसको गीता में परम अक्षर पुरूष, सच्चिदानंद घन ब्रह्म, दिव्य परमपुरूष, तत् ब्रह्म कहा है। (गीता अध्याय 7 श्लोक 29, अध्याय 8 श्लोक 3, अध्याय 8 श्लोक 8, 9, 10)

काल ब्रह्म का राज्य इक्कीस ब्रह्माण्ड का क्षेत्र है जिसको काल लोक कहते हैं। काल ब्रह्म को एक लाख मानव शरीरधारी जीव खाने का शाॅप लगा है। जिस कारण से यह अधूरा अध्यात्मिक ज्ञान तथा साथ में बुराई जैसे-शराब, माँस, तम्बाकू का सेवन करने तथा धाम-तीर्थ आदि पूजने का भी ज्ञान देता है। जिस कारण से साधक साधना करते हुए अन्य विषय-विकार तथा शास्त्र विरूद्ध साधना करके अपना जीवन व्यर्थ करते हैं और काल ब्रह्म के जाल में ही रह जाते हैं। काल ब्रह्म की यही कोशिश है। दूसरी शक्ति सत्य पुरूष है। असँख्य ब्रह्माण्डों में जितने भी प्राणी हैं, ये सब सत्य पुरूष जी की आत्माऐं हैं जो सत्यलोक में रहते थे। वहाँ से अपनी अल्पबुद्धि के कारण काल ब्रह्म के साथ यहाँ आ गए। वहाँ पर सत्यलोक में प्रत्येक जीव का अपना घर-परिवार सर्व सामान था। प्रत्येक को काल ब्रह्म के देवताओं से भी अधिक सुविधाऐं थी। कोई वृद्ध नहीं होता था, कोई मरता नहीं था। सृष्टि ऐसी ही है। यह पाँच तत्त्व से बनी है। वहाँ एक नूर तत्त्व से बनी सृष्टि है। यह मिट्टी से निर्मित जानो, वहाँ की सोने से बनी मानो। यह नाशवान है। वह अविनाशी है। सत्य पुरूष स्वयं कबीर जी हैं। उनके शरीर का नाम कबीर है। वेदों में कविर्देव कहते हैं। कुरान में अल्लाह अकबर, अल्लाह कबीर कहते हैं। परमेश्वर कबीर जी चाहते हैं कि सर्व जीव मेरे ज्ञान को समझें और मेरे द्वारा बताई भक्ति साधना करें। सर्व बुराई त्यागकर निर्मल होकर सत्यलोक में चले जाएंगे। वहाँ इनको कोई कष्ट नहीं है। न मरण है, न वृद्ध अवस्था। सर्व खाद्य पदार्थ सदा उपलब्ध हैं। कोई डाकू-बदमाश, चोर आदि नहीं है। स्त्री-बच्चे, पुरूष सब ऐसी ही सृष्टि है। काल ब्रह्म चाहता है कि सर्व प्राणी मेरे जाल में फंसे रहें। जन्मते-मरते रहें। बुराई करके पापग्रस्त होकर जन्मते-मरते रहें। किसी को सत्यलोक तथा सत्य पुरूष का ज्ञान न हो। मेरे तक ज्ञान को अंतिम मानें। इसलिए काल ब्रह्म परमेश्वर कबीर जी की आत्माओं में से अच्छी आत्मा को अपना पैगम्बर यानि संदेशवाहक ज्ञान देने के लिए भक्ति दूत बनाकर भेजता है। अपने काल जाल में रखने वाला ज्ञान देता है। उसी ने बाबा आदम, हजरत दाऊद, हजरत मूसा, हजरत ईशा, हजरत मोहम्मद को तथा अवतारों राम, कृष्ण, आदि शंकराचार्य, ऋषि-मुनियों द्वारा अपना प्रचार करा रखा है। सत्य पुरूष प्रत्येक युग के प्रारम्भ में स्वयं आते हैं। अपनी लीला करते हैं। अपना यथार्थ ज्ञान स्वयं प्रचार करते हैं। उसकी पुस्तकें बन जाती हैं। फिर परमेश्वर अपना पैगम्बर यानि भक्ति प्रचारक दूत भेजते हैं। सत्य पुरूष के पैगम्बर से पहले काल ब्रह्म अपने पैगम्बर भेज देता है। उनके द्वारा जनता को असत्य ज्ञान तथा अन्य बुराइयों पर आरूढ़ कर देता है। सर्व मानव समाज अपनी-अपनी साधना तथा अध्यात्म ज्ञान तथा परंपरा को सर्वश्रेष्ठ मानकर अडिग हो जाता है।

जब सत्यपुरूष आप आते हैं या अपना अंश भेजते हैं, तब सब मानव उनके द्वारा बताए गए सत्य ज्ञान को असत्य मानकर उनका घोर विरोध करते हैं। हे धर्मदास! आप यह प्रत्यक्ष देख भी रहे हो। आप भी तो काल के ज्ञान तथा साधना के ऊपर अडिग थे। ऐसे ही अनेकों श्रद्धालु काल प्रभु को दयाल, कृपावान प्रभु मानकर भक्ति कर रहे होते हैं। काल ब्रह्म भी परमात्मा की अच्छी-सच्ची निष्ठावान आत्माओं को अपना पैगम्बर बनाता है। बाबा आदम की संतान में 1 लाख 80 हजार पैगम्बर, हिन्दू धर्म के 88 हजार ऋषि तथा अन्य प्रचारक, ये अच्छी तथा सच्ची निष्ठा वाले थे जिनको काल ब्रह्म ने अपना प्रचारक बनाया। ऋषियों ने पवित्र वेदों, पवित्र श्रीमद्भगवत गीता तथा पुराणों के आधार से स्वयं भी साधना की तथा अपने अनुयाईयों को भी वही साधना करने को कहा। वेदों तथा गीता में ज्ञान तो श्रेष्ठ है, परंतु अधूरा है। पुराण जो सँख्या में 18 हैं, ये ऋषियों का अपना अनुभव तथा कुछ-कुछ वेद ज्ञान है तथा देवी-देवताओं की जीवनी लिखी है। चारों वेदों का ज्ञान काल ब्रह्म ने दिया। चारों वेदों का सारांश अर्थात् संक्षिप्त रूप श्रीमद्भवगत गीता है। चारों वेदों का ज्ञान काल ब्रह्म ने सर्व प्रथम दिया था। उसके पश्चात् उसी काल ब्रह्म ने चार किताबों (जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरान शरीफ) का ज्ञान दिया है। भक्ति का मार्ग वेदों तथा गीता में बताया गया है। उसके पश्चात् दाऊद जी को जबूर किताब वाला ज्ञान दिया। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति का आंशिक ज्ञान दिया। इसके पश्चात् मूसा जी को तौरेत पुस्तक वाला ज्ञान दिया तथा इसके पश्चात् ईसा जी को इंजिल पुस्तक वाला ज्ञान दिया। फिर बाद में कुरान शरीफ वाला ज्ञान मोहम्मद जी को दिया। वेदों में भक्ति तथा भगवान का ज्ञान बताया है। वह ज्ञान अन्य पुस्तकों जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरान शरीफ में दोहराना उचित न जानकर सामान्य ज्ञान दिया है। इनमें कुछ वेद ज्ञान है तथा कुरान शरीफ में लगभग 40 प्रतिशत ज्ञान बाईबल वाला है। (बाईबल ग्रन्थ में तीन पुस्तक इकट्ठी की गई हैं, जबूर, तौरेत तथा इंजिल) मूसा जी के अनुयाई यहूदी कहलाते हैं। ईशा जी के अनुयाई ईसाई कहे जाते हैं। मोहम्मद जी के अनुयाई मुसलमान कहे जाते हैं। ये सब बाबा आदम को अपना प्रथम पुरूष अर्थात् सब आदमियों का पिता मानते हैं। ये अब मानते हैं कि जब तक सृष्टि चलेगी, तब तक सर्व मानव मरते रहेंगे। उनको कब्र में दबाते चलो। जिस समय कयामत (प्रलय) आएगी, उस समय सब व्यक्ति (स्त्री-पुरूष) कब्रों से निकालकर मुर्दे जीवित किए जाएंगे। उनके कर्मों का हिसाब होगा जिन्होंने चारों कतेबों (पुस्तकों) में लिए अल्लाह के आदेशानुसार कर्म किए हैं। वे जन्नत (स्वर्ग) में रहेंगे। जिन्होंने चारों पुस्तकों (जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरान शरीफ) के आदेश का पालन नहीं किया। वे सदा दोजिख (नरक) की आग में जलेंगे। इसके पश्चात् यहाँ की सृष्टि सदा के लिए नष्ट हो जाएगी। मुसलमानों का मानना है कि कयामत से पहले केवल निराकार प्रभु था। वर्तमान में जन्नत में कोई नहीं है। न ही दोजख में कोई है। मुसलमान नहीं मानते कि पुनर्जन्म होता है। वे केवल एक बार जन्म, फिर मरण, उसके पश्चात् कब्र में, फिर जब सृष्टि का विनाश होगा, तब कब्र से निकालकर कर्मानुसार स्वर्ग तथा नरक, फिर full stop यानि सृष्टि क्रम का पूर्ण विराम रहेगा। यदि उपरोक्त बात सत्य है तो हजरत मुहम्मद जी ने जन्नत में बाबा आदम, मुसा, ईशा, दाऊद आदि की मण्डली को देखा। उनको भी कब्र में रहना चाहिए था। इससे आप मुसलमानों का विधान गलत सिद्ध हुआ।

परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी से कहा कि हे धर्मदास! यह विचार तथा ज्ञान गलत है। वास्तविकता यह है कि जन्म-मरण, पुनर्जन्म उस समय तक चलता रहता है, जब तक जीव मेरी (कबीर जी की) शरण में नहीं आता। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मोहम्मद की जीवनी इस प्रकार है। ईशा मसीह के लगभग 600 वर्ष पश्चात् हजरत मोहम्मद जी का जन्म यहूदी समुदाय में हुआ। उस समय आध्यात्मिक अज्ञानता पूरी तरफ फैल चुकी थी। उस समुदाय के सब व्यक्ति मूर्ति पूजक थे। मोहम्मद जी के पिता का नाम अबदुल्ला था। दादा जी का नाम अब्दुल मुअतिल था। मोहम्मद का जन्म एक बिल्ला रहमान नामक फकीर (साधु) के सूक्ष्म मिलन से रहे गर्भ से हुआ था। इसको मोहम्मद की माता ने स्वपन दोष माना था। {इसी प्रकार ईशा जी की माता मर्यम को भी गर्भ एक फरिश्ते से रहा था। मर्यम ने भी इसे स्वपन दोष माना था, परंतु ईशा के पिता युसुफ ने इसे गलत कर्म मानकर मर्यम को तलाक देना चाहा था। उसी समय एक फरिश्ता (देवता) प्रकट हुआ। उसने कहा कि मर्यम को गर्भ मेरे से रहा है। इसको कुछ पता नहीं है। यह प्रभु की ओर से भेजा गया नबी है। संसार को भक्ति संदेश देने संसार में जन्म लेगा। युसुफ ने देवता की बात मानकर मर्यम को आदर के साथ रखा। महाभारत में भी प्रमाण है कि धृतराष्ट्र तथा पाण्डव दो भाई थे। राजा शान्तनु के पुत्र थे। पाण्डव छोटा था। वह रोगी था, संतानोत्पत्ति में असमर्थ था। उसकी दो पत्नियाँ थी। एक कुंती व दूसरी मादरी। कुंती ने तीन पुत्रों को जन्म दिया जो तीन फरिश्तों (देवताओं) से गर्भ रहा था। युधिष्ठर का जन्म धर्मराज द्वारा कुंती से मिलन से हुआ था। अर्जुन का जन्म कुंती से इन्द्र देवता के भोग-विलास से हुआ था। भीम का जन्म पवन देवता द्वारा कुंती से मिलन करने से हुआ था। नकुल का जन्म स्रत देवता से मादरी से मिलन से तथा सहदेव का जन्म नासत्य देवता से मादरी से मिलन से हुआ था। पुराणों में कथा है कि एक समय सूर्य देव की पत्नी घर छोड़कर जंगल में चली गई। कारण यह था कि सूर्य देव के अधिक भोग-विलास (ैमग) से तंग आकर अपनी नौकरानी को अपने जैसे स्वरूप का आशीर्वाद दिया और उससे कहा कि तू मेरा भेद मत देना। मैं अपने पिता विश्वकर्मा के घर जाती हूँ। ऐसा कहकर उषा चली गई। नौकरानी का स्वरूप उषा जैसा हो गया। जब सूर्य देव को पता चला तो वह विश्वकर्मा के घर गए। विश्वकर्मा ने अपनी पुत्री को वापिस घर जाने पर जोर दिया तो उषा जंगल में घोड़ी का रूप बनाकर तप करने लगी। उसने सोचा था कि यदि स्त्री रूप में तप करूँगी तो कोई इज्जत का दुश्मन हो जाएगा। सूर्य को पता चला कि उषा तो यहाँ से भी चली गई है तो ध्यान से दिव्य दृष्टि से देखा तो उषा घोड़ी रूप में तप कर रही है। सूर्य देव ने घोड़े का रूप धारण किया और उषा से भोग करने की तड़फ हुई। घोड़ी रूप में उषा ने घोड़े को गलत नीयत से अपनी ओर आता देख अपने पृष्ठ भाग (इन्द्री) को बचाने के लिए घोड़े की तरफ मुख करके साथ-साथ घूमती रही। वासनावश सूर्य रूपी घोड़ा मुख में ही भोग करने लगा। उसकी बीज शक्ति पृथ्वी के ऊपर गिर गई। उससे दो लड़के उत्पन्न हुए। वे अश्वनी (घोड़ी) कुमार कहलाए। उनका नाम स्रत तथा नासत्य रखा। वे अश्वनी कुमार देवता कहे जाते हैं।} अबदुल्ला जी अपनी पत्नी को ससुराल से लेकर आए।

{सूक्ष्मवेद में लिखा है कि:-

‘‘मुसलमान बिस्तार बिल्ला का। नौज उदर घर संजम जाका।।
जाके भोग मोहम्मद आया। जिसने यह धर्म चलाया।।

कुछ महीने बाद अबदुल्ला जी कुछ व्यापारियों के साथ रोजगार के लिए गए तो बीमार होकर मृत्यु को प्राप्त हो गए। उस समय मोहम्मद जी माता के गर्भ में थे। बाद में मोहम्मद जी का जन्म हुआ। छः वर्ष के हुए तो माता जी अपने पति की कब्र देखने के लिए गाँव के कुछ स्त्री-पुरूषों के साथ गई थी तो उनकी मृत्यु भी रास्ते में हो गई। नबी मोहम्मद अनाथ हो गए। दादा पालन-पोषण करने लगा। जब आठ वर्ष के हुए तो दादा की भी मृत्यु हो गई। पूर्ण रूप से अनाथ हो गए। जैसे-तैसे 25 वर्ष के हुए, तब एक 40 वर्ष की खदिजा नामक विधवा से विवाह हुआ। {खदिजा का दो बार बड़े धनवान घरानों में विवाह हुआ था। दोनों की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी सब संपत्ति खदिजा के पास ही थी। वह बहुत रईस थी।} खदिजा से मोहम्मद जी के तीन पुत्र (कासिम, तयब, ताहिर) तथा चार पुत्री हुई। जिस समय मोहम्मद जी 40 वर्ष के हुए तो उनको जबरील नामक फरिश्ता मिला और कुरान शरीफ का ज्ञान देना प्रारम्भ किया। वे नबी बने। मुसलमानों का मानना है कि हजरत मोहम्मद जी को कुरान शरीफ का ज्ञान सीधा बेचून (निराकार) अल्लाह की ओर से भेजा गया है। उसमें बिना किसी मिलावट किए जबरील फरिश्ते ने मोहम्मद जी को बताया है। कभी-कभी फरिश्ता मोहम्मद के शरीर में प्रवेश करके बोलता था। मोहम्मद जी चद्दर मुख पर ढ़ककर लेट जाते थे। ऊपर से अल्लाह के पास से वयह (संदेश) आती थी। उस ज्ञान को मोहम्मद जी मुख ढ़के-ढ़के बोलते थे, लिखी जाती थी। इस तरह आने वाला संदेश बहुत दुःखदायी होता था। मोहम्मद जी का सारा शरीर कांपता था। वास्तव में फरिश्ता अंदर प्रवेश करके बोलता था। कभी-कभी काल ब्रह्म भी स्वयं प्रवेश करके बोलता था। (काल ब्रह्म ने कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके गीता वाला ज्ञान बोला था।) एक दिन हजरत मोहम्मद जी ने अपनी ऊपर (स्वर्ग) की यात्रा का वर्णन बताया। एक गधे जैसा जानवर (जिसे बुराक नाम दिया) लेकर जबरील देवता आया और मोहम्मद जी को बैठाकर ऊपर के सातों आसमानों की सैर कराई। ऊपर जाकर एक मैराज यानि सीढ़ी ऊपर से नीचे की ओर खुली, उसके ऊपर बुराक चढ़ा। मोहम्मद जी भी उस पर बैठे थे। जबरील नीचे रहा। फिर एक पक्षी आया। उस पर बैठकर मोहम्मद जी अल्लाह के पास गए। पक्षी भी चला गया। मोहम्मद जी ने अल्लाह से सीधी वार्ता की। अल्लाह पर्दे के पीछे से बोला और 50 नमाज प्रतिदिन करने को कहा। फिर मूसा जी के कहने से वापिस जाकर 5 नमाज करने की आज्ञा अल्लाह से लेकर आए जो वर्तमान में मुसलमान करते हैं। हजरत मोहम्मद जी ने बताया कि मैंने जन्नत (स्वर्ग) में सब आदमियों के पिता बाबा आदम जी को देखा व उनके दांई और स्वर्ग था। स्वर्ग में उसकी नेक संतान थी जिन्होंने अल्लाह के आदेशानुसार भक्ति की थी। वे स्वर्ग (जन्नत) में सुखी थे। बाबा आदम के बांई ओर दोजख (नरक) था। उसमें बाबा आदम की निकम्मी संतान कष्ट भोग रही थी जिन्होंने अल्लाह की कतेबों के आदेशानुसार भक्ति न करके जीवन व्यर्थ किया था। हजरत मोहम्मद जी ने बताया कि बाबा आदम बांई ओर नरक में अपनी संतान को नरक में कष्ट उठाते देखकर रो रहे थे और दांई ओर स्वर्ग में नेक संतान को देखकर हँस रहे थे। जबरील देवता ने बताया कि ये बाबा आदम हैं। मोहम्मद साहब ने बताया कि ऊपर के लोकों में मुझे हजरत दाऊद, हजरत मूसा तथा हजरत ईशा जी तथा अन्य नबियों की जमात (मण्डली) मिली। मैंने उनको नमाज पढ़ाई। फिर नीचे लाकर बुराक छोड़कर चला गया। हजरत मुहम्मद जी के इस आँखों देखे प्रकरण को मुसलमान सत्य मानते हैं। इसलिए आपका वह सिद्धांत गलत सिद्ध हुआ कि मृत्यु के पश्चात् प्रलय (कयामत) तक बाबा आदम, हजरत दाऊद, मूसा, ईशा आदि-आदि को जन्नत की बजाय कब्रों में होना चाहिए था जिनको हजरत मुहम्मद जी ने जन्नत में देखा तथा बाबा आदम की संतान भी कब्रों में रहनी चाहिए थी जो ऊपर स्वर्ग (जन्नत) तथा नरक (दोजख) में हजरत मुहम्मद जी ने देखी थी। आपका सिद्धांत गलत है। हजरत मोहम्मद जी को खदिजा जी से तीन पुत्र तथा चार बेटी प्राप्त हुई थी। तीनों बेटे मोहम्मद जी की आँखों के सामने अल्लाह को प्यारे हुए।

पवित्र मुसलमान धर्म का संक्षिप्त परिचय

पहले दिन दिल्ली के सम्राट सिकंदर लोधी का असाध्य जलन का रोग परमात्मा कबीर जी ने आशीर्वाद से समाप्त किया था तथा सिकंदर लोधी राजा ने क्रोधवश स्वामी रामानंद जी की गर्दन काटी थी। परमात्मा कबीर जी ने जीवित किया था। उस समय से शेखतकी पीर साथ नहीं था। अगले दिन पूज्य कबीर परमेश्वर राज दरबार में पहुँचे। काशी नरेश बीरदेव सिंह बघेल तथा दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी ने डण्डवत् प्रणाम (जमीन पर लम्बा लेटकर) किया तथा कबीर प्रभु जी को आसन पर बैठाया तथा स्वयं नीचे जमीन पर बिछे गलीचे पर विराजमान हो गए। बादशाह सिकंदर ने प्रार्थना की कि हे परवरदीगार ! मेरा रोग न तो हिन्दू संतों से शांत हुआ तथा न ही मुसलमान पीरों, काजी तथा मुल्लाओं से। क्या कारण था दीन दयाल आपके आशीर्वाद मात्र से ही मेरा जान लेवा रोग छू मंत्र हो गया। कल रात्रि में मैंने पेट भर कर खाना खाया। वर्षों से यह कष्ट मुझे सत्ता रहा था। आपकी कृप्या से मैं स्वस्थ हो गया हूँ।

परमेश्वर कबीर साहेब जी ने बताया कि राजन् पूर्ण परमात्मा अल्लाहु अकबर(अल्लाहु कबीरू) ही सर्व पाप नाश (क्षमा) कर सकता है जिसका मेरे अतिरिक्त किसी को ज्ञान नहीं है। अन्य प्रभु तो केवल किए कर्म का फल ही दे सकते हैं। जैसे प्राणी को दुःख तो पाप से होता है तथा सुख पुण्य से। आपको पाप कर्म के कारण कष्ट था। यह आपके प्रारब्ध में लिखा था। यह किसी भी अन्य भगवान से ठीक नहीं हो सकता था। क्योंकि पाप नाशक (क्षमा करने वाले) पूर्ण परमात्मा कविर्देव/अल्लाहु अकबर (अल्लाहु कबीरू) के वास्तविक ज्ञान व भक्ति विधि को न तो हिन्दू संत, गुरुजन जानते हैं तथा न ही मुसलमान पीर, काजी तथा मुल्ला ही परिचित हैं। उस सर्व शक्तिमान परमेश्वर की पूजा विधि तथा पूर्ण ज्ञान केवल यह दास जानता है। न श्री राम तथा श्री कृष्ण अर्थात् श्री विष्णु जी जानते तथा न ही श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी, न ब्रह्म (जिसे आप निराकार प्रभु कहते हो) जानता। न हजरत मुहम्मद जानता था, न ही अन्य मुसलमान पीर व काजी तथा मुल्ला ही जानते हैं।

शेखतकी नामक मुसलमान पीर से वार्ता

परमेश्वर कबीर साहेब जी के मुख कमल से उपरोक्त वचन सुनकर शेखतकी व्यंगात्मक तरीके से बोला कि क्या तू ही जानता है सर्व ज्ञान को? हमारे हजरत मुहम्मद साहेब जी को भी अज्ञानी कह रहा है। बीच बचाव करते हुए बीरसिंह बघेल काशी नरेश ने कहा पीर जी इसमें नाराज होने की कौन-सी बात है, प्रेम पूर्वक शंका का समाधान करवाओ। काशी नरेश जानता था कि सर्व ज्ञान सम्पन्न पूज्य कबीर साहेब जी ज्ञान गोष्ठी करके पीर जी का भ्रम निवारण करना चाहते हैं। काशी नरेश ने शेखतकी से कहा कबीर जी ने किस कारण से हजरत मुहम्मद जी को पूर्ण ज्ञान से वंचित कहा है आप कारण पूछो। शेखतकी ने कहा प्रश्न ही तो पूछ रहा हूँ। कबीर जी कारण बताए किस आधार पर हमारे परम आदरणीय हजरत मुहम्मद जी को अज्ञानी कहा है?

पवित्र र्कुआन शरीफ ने प्रभु के विषय में क्या बताया है ?

परम पूज्य कबीर परमेश्वर ने कहना प्रारम्भ किया। पवित्र र्कुआन शरीफ सुरत फुर्कानि संख्या 25 आयत 52 से 59 में जिस कबीर अल्लाह का विवरण है वह पूर्ण परमात्मा है। जिसे अल्लाहु अकबर(अकबीरू) कहते हो। र्कुआन शरीफ का ज्ञान दाता अल्लाह किसी अन्य कबीर नामक अल्लाह की महिमा का गुणगान कर रहा है। आयत सं. 52 से 58 तथा 59 में हजरत मुहम्मद जी को र्कुआन शरीफ के ज्ञान दाता प्रभु ने कहा है कि हे नबी मुहम्मद ! जो कबीर नामक अल्लाह है उसने सर्व ब्रह्मण्डो की रचना की है। वही सर्व पाप नाश (क्षमा) करने वाला है तथा सर्व के पूजा करने योग्य है(इबादही कबीरा अर्थात् पूजा के योग्य कबीर)। उसी ने जमीन तथा आसमान के मध्य जो कुछ भी है सर्व की रचना छः दिन में की है तथा सातवें दिन आसमान में तख्त पर जा विराजा। काफिर लोग उस कबीर प्रभु (अल्लाहु अकबर) को सर्व शक्तिमान प्रभु नहीं मानते। आप उनकी बातों में मत आना। उनका कहा मत मानना। मेरे द्वारा दिए र्कुआन शरीफ की दलीलों पर विश्वास रखना तथा अहिंसा के साथ कबीर अल्लाह के लिए संघर्ष (जिहाद) करना, लड़ाई नहीं करना (सूरत फुर्कानि आयत 52)। उस परमात्मा कबीर (अल्लाहु अकबर) की भक्ति विधि तथा उसके विषय में पूर्ण ज्ञान मुझे नहीं है। उस सर्व शक्तिमान, सर्व ब्रह्मण्डों के रचनहार, सर्व पाप नाशक, सर्व के पूजा योग्य कबीर अल्लाह की पूजा के विषय में किसी तत्त्वदर्शी (बाखबर) संत से पूछो। कबीर परमेश्वर ने कहा शेखतकी जी आपके अल्लाह को ही ज्ञान नहीं है तो आप के हजरत मुहम्मद साहेब जी को कैसे पूर्ण ज्ञान हो सकता है? तथा अन्य काजी, मुल्ला तथा पीर भी सत्य साधना तथा तत्त्वज्ञान से वंचित हैं। जिस कारण से साधक के कष्ट का निवारण नहीं होता। अन्य साधना जैसे पाँच समय निमाज, बंग आदि देने से मोक्ष तथा कष्ट निवारण नहीं होता। जन्म-मृत्यु तथा स्वर्ग-नरक तथा अन्य प्राणियों के शरीरों में भी किए कर्म के आधार से कष्ट भोगना पड़ता है। उपरोक्त वार्ता सुनकर शेखतकी ने तुरन्त र्कुआन शरीफ को खोला तथा सूरत फुर्कानि संख्या 25 आयत 52 से 59 को पढ़ा जिसमें उपरोक्त विवरण सही था। वास्तविकता को आँखों देखकर भी मान हानि के भय से कहा कि ऐसा कहीं नहीं लिखा है। यह काफिर झूठ बोल रहा है। उस समय शिक्षा का अभाव था। मुसलमान समाज अरबी भाषा से परिचित नहीं था। र्कुआन शरीफ अरबी भाषा में लिखी थी। बादशाह सिकंदर को भी शंका हो गई कि परमेश्वर कबीर साहेब जी भले ही शक्ति युक्त हैं परन्तु अशिक्षित होने के कारण र्कुआन शरीफ के विषय में नहीं जान सकते। शेखतकी ने जले-भुने वचन बोले क्या तूही है वह बाखबर ? फिर बता दे वह अल्लाहु अकबर कैसा है? यदि परमात्मा को साकार कहता है तो कौन है? कहाँ रहता है?

परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा:- वह कबीर अल्लाह जिसे आप अल्लाहू अकबर कहते हो मैं ही हूँ। मैं ऊपर सतलोक में रहता हूँ। मैंने ही सर्व ब्रह्मण्डों की रचना की है। मैं हजरत मुहम्मद जी को भी जिन्दा संत का रूप धारण करके मिला था तथा उस प्यारी आत्मा को सतलोक दिखाकर वापिस छोड़ा था। हजरत मुहम्मद से कहा था कि आप अब मेरी महिमा सर्व अनुयाईयों को सुनाओ। परन्तु जिबराईल फरिश्ते के भय के कारण तत्त्व ज्ञान का प्रचार नहीं किया तथा न मेरी बातों पर विश्वास किया। क्योंकि उससे पूर्व जिबराईल देवता हजरत मुहम्मद जी को पितर लोक में घुमा लाया था। जहाँ पर हजरत मुहम्मद जी ने अपने पूर्वज बाबा आदम को देखा जो दांई ओर मुंह करके हंस रहा था तथा बांई ओर मुंह करके रो रहा था। हजरत जिबराईल से हजरत मुहम्मद जी ने पूछा कि यह व्यक्ति कौन है, जो एक बार हंस रहा है एक बार रो रहा है ? जिबराईल ने बताया यह बाबा आदम है। दांई ओर स्वर्ग में इनकी पुण्य कर्मी संतान है तथा बांई ओर नरक में बुरी संतान कष्ट उठा रही है। इसलिए जब नेक संतान को स्वर्ग में सुखी देखता है तो हंसत्ता है। जब बांई ओर बुरी संतान को महा कष्ट से नरक में पीड़ित देखता है तो बुरी तरह रोता है। इसी लोक में अन्य स्थान पर हजरत मूसा तथा हजरत ईसा जी आदि को भी देखा। वहाँ पर नबियों की मण्डली देखी। उनसे हजरत मुहम्मद जी की वार्ता हुई। इस कारण से हजरत मुहम्मद काल के जाल को न समझकर उसी स्थान को वास्तविक ठिकाना मान चुका था क्योंकि वहाँ पितर लोक में पवित्र ईसाई तथा पवित्र मुसलमान धर्म के पूज्य बाबा आदम भी थे तथा अन्य नबी भी विराजमान थे।

माँस-मदिरा निषेध का उपदेश

हजरत मुहम्मद जी जिस साधना को करता था वही साधना अन्य मुसलमान समाज भी कर रहा है। वर्तमान में सर्व मुसलमान श्रद्धालु माँस भी खा रहे हैं। परन्तु नबी मुहम्मद जी ने कभी माँस नहीं खाया तथा न ही उनके सीधे अनुयाईयों(एक लाख अस्सी हजार) ने माँस खाया। केवल रोजा व बंग तथा नमाज किया करते थे। गाय आदि को बिस्मिल(हत्या) नहीं करते थे।

नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।
अरस कुरस पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगम्बर पाख पुरुष थे, साहिब के अब्दाली।।

भावार्थ:- नबी मोहम्मद तो आदरणीय है जो प्रभु के अवतार कहलाए हैं। कसम है एक लाख अस्सी हजार को जो उनके अनुयाई थे उन्होंने भी कभी बकरे, मुर्गे तथा गाय आदि पर करद नहीं चलाया अर्थात् जीव हिंसा नहीं की तथा माँस भक्षण नहीं किया। वे हजरत मोहम्मद, हजरत मूसा, हरजत ईसा आदि पैगम्बर(संदेशवाहक) तो पवित्र व्यक्ति थे तथा ब्रह्म(ज्योति निरंजन/काल) के कृपा पात्र थे, परन्तु जो आसमान के अंतिम छोर(सतलोक) में पूर्ण परमात्मा(अल्लाहू अकबर अर्थात् अल्लाह कबीर) है उस सृष्टि के मालिक की नजर से कोई नहीं बचा।

मारी गऊ शब्द के तीरं, ऐसे थे मोहम्मद पीरं।।
शब्दै फिर जिवाई, हंसा राख्या माँस नहीं भाख्या, एैसे पीर मुहम्मद भाई।।

भावार्थ: एक समय नबी मुहम्मद ने एक गाय को शब्द(वचन सिद्धि) से मार कर सर्व के सामने जीवित कर दिया था। उन्होंने गाय का माँस नहीं खाया। अब मुसलमान समाज वास्तविकता से परिचित नहीं है। जिस दिन गाय जीवित की थी उस दिन की याद बनाए रखने के लिए गऊ मार देते हो। आप जीवित नहीं कर सकते तो मारने के भी अधिकारी नहीं हो। आप माँस को प्रसाद रूप जान कर खाते तथा खिलाते हो। आप स्वयं भी पाप के भागी बनते हो तथा अनुयाईयों को भी गुमराह कर रहे हो। आप दोजख (नरक) के पात्र बन रहे हो।

कबीर-माँस अहारी मानई, प्रत्यक्ष राक्षस जानि। ताकी संगति मति करै, होइ भक्ति में हानि।।1।।
कबीर-माँस खांय ते ढेड़ सब, मद पीवैं सो नीच। कुलकी दुरमति पर हरै, राम कहै सो ऊंच।।2।।
कबीर-माँस भखै औ मद पिये, धन वेश्या सों खाय। जुआ खेलि चोरी करै, अंत समूला जाय।।5।।
कबीर-माँस माँस सब एक है, मुरगी हिरनी गाय। आँखि देखि नर खात है, ते नर नरकहिं जाय।।6।।
कबीर-यह कूकर को भक्ष है, मनुष देह क्यों खाय। मुखमें आमिख मेलिके, नरक परंगे जाय।।7।।
कबीर-पापी पूजा बैठिकै, भखै माँस मद दोइ। तिनकी दीक्षा मुक्ति नहिं, कोटि नरक फल होइ।।10।।
कबीर-जीव हनै हिंसा करै, प्रगट पाप सिर होय। निगम पुनि ऐसे पाप तें, भिस्त गया नहिं कोय।।14।।
कबीर-तिलभर मछली खायके, कोटि गऊ दै दान। काशी करौंत ले मरै, तौ भी नरक निदान।।16।।
कबीर-बकरी पाती खात है, ताकी काढी खाल। जो बकरीको खात है, तिनका कौन हवाल।।18।।
कबीर-मुल्ला तुझै करीमका, कब आया फरमान। घट फोरा घर घर बांटा, साहबका नीसान।।21।।
कबीर-काजीका बेटा मुआ, उर में सालै पीर। वह साहब सबका पिता, भला न मानै बीर।।22।।
कबीर-पीर सबनको एकसी, मूरख जानैं नाहिं। अपना गला कटायकै, क्यों न बसो भिश्त के माहिं।।23।।
कबीर-मुरगी मुल्लासों कहै, जबह करत है मोहिं। साहब लेखा माँगसी, संकट परिहै तोहिं।।24।।
कबीर-जोर करि जबह करै, मुखसों कहै हलाल। साहब लेखा माँगसी, तब होसी कौन हवाल।।28।।
कबीर-जोर कीयां जुलूम है, मांगै ज्वाब खुदाय। खालिक दर खूनी खडा, मार मुहीं मुँह खाय।।29।।
कबीर-गला काटि कलमा भरै, कीया कहै हलाल। साहब लेखा माँगसी, तब होसी जबाब-सवाल।।30।।
कबीर-गला गुसाकों काटिये, मियां कहरकौ मार। जो पाँचू बिस्मिल करै, तब पावै दीदार।।31।।
कबीर-ये सब झूठी बंदगी, बेरिया पाँच निमाज। सांचहि मारै झूठ पढ़ि, काजी करै अकाज।।32।।
कबीर-दिनको रोजा रहत हैं, रात हनत है गाय। यह खून वह बंदगी, कहुं क्यों खुशी खुदाय।।33।।
कबीर-कबीर तेई पीर हैं, जो जानै पर पीर। जो पर पीर न जानि है, सो काफिर बेपीर।।36।।
कबीर-खूब खाना है खीचड़ी, माँहीं परी टुक लौन। माँस पराया खायकै, गला कटावै कौन।।37।।
कबीर-कहता हूँ कहि जात हूँ, कहा जो मान हमार। जाका गला तुम काटि हो, सो फिर काटै तुम्हार।।38।।
कबीर-हिन्दू के दया नहीं, मिहर तुरकके नाहिं। कहै कबीर दोनूं गया, लख चैरासी माहिं।।39।।
कबीर-मुसलमान मारै करदसो, हिंदू मारे तरवार। कहै कबीर दोनूं मिलि, जैहैं यमके द्वार।।40।।

उपरोक्त अमृतवाणी में पूज्य कबीर परमेश्वर ने समझाया कि जो व्यक्ति माँस खाते हैं, शराब पीते हैं, सत्संग सुनकर भी बुराई नहीं त्यागते, उपदेश प्राप्त नहीं करते, उन्हें तो साक्षात राक्षस जानों। अनजाने में गलती न जाने किससे हो जाए। यदि वह बुराई करने वाला व्यक्ति सत्संग विचार सुनकर बुराई त्याग कर भगवान की भक्ति करने लग जाता है वह तो नेक आत्मा है, वह चाहे किसी जाति व धर्म का हो। जो माँस आहार तथा मदिरा पान त्यागकर प्रभु भक्ति नहीं करता वह तो ढेड(नीच) व्यक्ति है, चाहे किसी जाति या धर्म का हो। भावार्थ है कि उच्च कर्म करने वाला उच्च है तथा नीच कर्म करने वाला नीच है। जाति या धर्म विशेष में जन्म मात्र से उच्च-नीच नहीं होता। जिन साधकों ने उपदेश ले रखा है उन्हें उपरोक्त प्रकार के बुराई करने वालों के पास नहीं बैठना चाहिए, जिससे आपकी भक्ति में बाधा पड़ेगी (साखी 1-2)।

जो व्यक्ति माँस भक्षण करते हैं, शराब पीते हैं, जो स्त्राी वैश्यावृति करती है तथा जो व्यक्ति उससे व्यवसाय करवा कर वैश्या से धन प्राप्त करते हैं, जुआ खेलते हैं तथा चोरी करते है, समझाने से भी नहीं मानते, वह तो महापाप के भागी हैं तथा घोर नरक में गिरेंगे(साखी 5)।

माँस चाहे गाय, हिरनी तथा मुर्गी आदि किसी प्राणी का है जो व्यक्ति माँस खाते हैं वे नरक के भागी हैं। जो व्यक्ति अनजाने में माँस खाते हैं(जैसे आप किसी रिश्तेदारी में गए, आपको पता नहीं लगा कि सब्जी है या माँस, आपने खा लिया) तो आपको दोष नहीं, परन्तु आगे से अति सावधान रहना। जो व्यक्ति आँखों देखकर भी खा जाते हैं वे दोषी हैं। यह माँस तो कुत्ते का आहार है, मनुष्य शरीर धारी के लिए वर्जित है(साखी 6-7)।

जो गुरुजन माँस भक्षण करते हैं तथा शराब पीते हैं उनसे नाम दीक्षा प्राप्त करने वालों कीे मुक्ति नहीं होती अपितु महा नरक के भागी होंगे(साखी 10)।

जो व्यक्ति जीव हिंसा करते हैं (चाहे गाय, सूअर, बकरी, मुर्गी, मनुष्य, आदि किसी भी प्राणी को मारते हैं) वे महापापी हैं, (भले ही जिन्होंने पूर्ण संत से पूर्ण परमात्मा का उपदेश भी प्राप्त है) वे कभी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते।(साखी-10-14)

जरा-सा (तिल के समान) भी माँस खाकर भक्ति करता है, चाहे करोड़ गाय दान भी करता है, उस साधक की साधना भी व्यर्थ है। माँस आहारी व्यक्ति चाहे काशी में करौंत से गर्दन छेदन भी करवा ले वह नरक ही जायेगा।(नोट - काशी/बनारस के हिन्दूओं के स्वार्थी गुरुओं ने भक्त समाज में भ्रम फैला रखा था कि जो काशी में मरता है वह स्वर्ग जाता है। अधिक भीड़ होने लगी तब एक और घातक योजना बनाई उसके तहत कहा कि जो शीघ्र स्वर्ग जाना चाहता है उसके लिए गंगा पर एक करौंत भगवान का भेजा आता है। उससे गर्दन कटवाने वालों के लिए स्वर्ग के कपाट खुले रहते हैं। उन स्वार्थी गुरुजनों ने मनुष्य हत्या के लिए एक हत्था खोल दिया। श्रद्धालु भक्तों ने आत्मकल्याण के लिए वहाँ गर्दन कटवाना भी स्वीकार कर लिया। परन्तु ज्ञानहीन गुरुओं के द्वारा बताई साधना से भी कोई लाभ नहीं होता)। इसलिए कहा है कि माँस खाने वाला चाहे कितना भी भक्ति तथा पुण्य व दान तथा बलिदान करे उसका कोई लाभ नहीं (साखी 16)।

बकरी जो आपने मार डाली वह तो घास-फूंस, पत्ते आदि खाकर पेट भर रही थी। इस काल लोक में ऐसे शाकाहारी पशु की भी हत्या हो गई तो जो बकरी का माँस खाते हैं उनका तो अधिक बुरा हाल होगा(साखी 18)।

पशु आदि को हलाल, बिस्मिल आदि करके माँस खाने व प्रसाद रूप में वितरित करने का आदेश दयालु (करीम) प्रभु का कब प्राप्त हुआ(क्योंकि पवित्र बाईबल उत्पत्ति ग्रन्थ में पूर्ण परमात्मा ने छः दिन में सृष्टि रची, सातवें दिन ऊपर तख्त पर जा बैठा तथा सर्व मनुष्यों के आहार के लिए आदेश किया था कि मैंने तुम्हारे खाने के लिए फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए हैं। उस करीम (दयालु प्रभु पूर्ण परमात्मा) की ओर से आपको फिर से कब आदेश हुआ ? वह कौन-सी र्कुआन में लिखा है ? पूर्ण परमात्मा सर्व मनुष्यों आदि की सृष्टि रचकर ब्रह्म(जिसे अव्यक्त कहते हो, जो कभी सामने प्रकट नहीं होता, गुप्त कार्य करता तथा करवाता रहता है) को दे गया। बाद में पवित्र बाईबल तथा पवित्र र्कुआन शरीफ आदि ग्रन्थों में जो विवरण है वह ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का तथा उसके फरिश्तों का है, या भूतों-प्रेतों का है। करीम अर्थात् पूर्ण ब्रह्म दयालु अल्लाहु कबीरू का नहीं है। उस पूर्ण ब्रह्म के आदेश की अवहेलना किसी भी फरिश्ते व ब्रह्म आदि के कहने से करने की सजा भोगनी पड़ेगी।)

एक समय एक व्यक्ति की दोस्ती एक पुलिस थानेदार से हो गई। उस व्यक्ति ने अपने दोस्त थानेदार से कहा कि मेरा पड़ोसी मुझे बहुत परेशान करता है। थानेदार (S.H.O.) ने कहा कि मार लट्ठ, मैं आप निपट लूंगा। थानेदार दोस्त की आज्ञा का पालन करके उस व्यक्ति ने अपने पड़ोसी को लट्ठ मारा, सिर में चोट लगने के कारण पड़ोसी की मृत्यु हो गई। उसी क्षेत्र का अधिकारी होने के कारण वह थाना प्रभारी अपने दोस्त को पकड़ कर लाया, कैद में डाल दिया तथा उस व्यक्ति को मृत्यु दण्ड मिला। उसका दोस्त थानेदार कुछ मदद नहीं कर सका। क्योंकि राजा का संविधान है कि यदि कोई किसी की हत्या करेगा तो उसे मृत्यु दण्ड प्राप्त होगा। उस नादान व्यक्ति ने अपने मित्र दरोगा की आज्ञा मान कर राजा का संविधान भंग कर दिया। जिससे जीवन से हाथ धो बैठा।

ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा की आज्ञा की अवहेलना करने वाला पाप का भागी होगा। क्योंकि र्कुआन शरीफ (मजीद) का सारा ज्ञान ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन, जिसे आप अव्यक्त कहते हो) का दिया हुआ है। इसमें उसी का आदेश है तथा पवित्र बाईबल में केवल उत्पत्ति ग्रन्थ के प्रारम्भ में पूर्ण प्रभु का आदेश है। पवित्र बाईबल में हजरत आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा को उस पूर्ण परमात्मा ने बनाया। बाबा आदम की वंशज संतान हजरत ईस्राईल, राजा दाऊद, हजरत मूसा, हजरत ईसा तथा हजरत मुहम्मद आदि को माना है। पूर्ण परमात्मा तो छः दिन में सृष्टि रचकर तख्त पर विराजमान हो गया। बाद का सर्व कतेबों (र्कुआन शरीफ आदि) का ज्ञान ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का प्रदान किया हुआ है। पवित्र र्कुआन का ज्ञान दाता स्वयं कहता है कि पूर्ण परमात्मा जिसे करीम, अल्लाह कहा जाता है उसका नाम कबीर है, वही पूजा के योग्य है। उसके तत्त्वज्ञान व भक्ति विधि को किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी संत) से पता करो। इससे सिद्ध है कि जो ज्ञान र्कुआन शरीफ आदि का है वह पूर्ण प्रभु का नहीं है (साखी 21)।

जब काजी के पुत्र की मृत्यु हो जाती है तो काजी को कितना कष्ट होता है। पूर्ण ब्रह्म(अल्लाह कबीर) सर्व का पिता है। उसके प्राणियों को मारने वाले से अल्लाह खुश नहीं होता। (साखी 22)

दर्द सर्व को एक जैसा ही होता है। यदि बकरे आदि का गला काट कर (हलाल करके) उसे स्वर्ग भेज देते हो तो काजी तथा मुल्ला अपना गला छेदन करके (हलाल करके) स्वर्ग प्राप्ति क्यों नहीं करते? (साखी 23)

जिस समय बकरी को मुल्ला मारता है तो वह बेजुबान प्राणी आँखों में आंसू भर कर म्यां-म्यां करके समझाना चाहता है कि हे मुल्ला मुझे मार कर पाप का भागी मत बन। जब परमेश्वर के न्याय अनुसार लेखा किया जाएगा उस समय तुझे बहुत संकट का सामना करना पड़ेगा। (साखी 24)

जबरदस्ती (बलात्) निर्दयता से बकरी आदि प्राणी को मारते हो, कहते हो हलाल कर रहे हैं। इस दोगली नीति का आपको महा कष्ट भोगना होगा। काजी तथा मुल्ला व कोई भी जीव हिंसा करने वाला पूर्ण प्रभु के कानून का उल्लंघन कर रहा है, जिस कारण वहाँ धर्मराज के दरबार में खड़ा-खड़ा पिटेगा। यदि हलाल ही करने का शौक है तो काम, क्रोध, मोह, अहंकार, लोभ आदि को करो।

पाँच समय निमाज भी पढ़ते हो व रोजों के समय रोजे (व्रत) भी रखते हो। शाम को गाय, बकरी, मुर्गी आदि को मार कर माँस खाते हो। एक तरफ तो परमात्मा की स्तुति करते हो, दूसरी ओर उसी के प्राणियों की हत्या करके पाप करते हो। ऐसे प्रभु कैसे खुश होगा? अर्थात् आप स्वयं भी पाप के भागी हो रहे हो तथा अनुयाईयों को भी गुमराह करने के दोषी होकर नरक में गिरोगे। (साखी 28 से 33)

कबीर परमेश्वर कह रहे हैं कि हे काजी, मुल्लाओं आप पीर (गुरु) भी कहलाते हो। पीर तो वह होता है जो दूसरे के दुःख को समझे उसे, संकट में गिरने से बचाए। किसी को कष्ट न पहुँचाए। जो दूसरे के दुःख में दुःखी नहीं होता वह तो काफिर (नीच) बेपीर (निर्दयी) है। वह पीर (गुरु) के योग्य नहीं है। (साखी 36)

उत्तम खाना नमकीन खिचड़ी है उसे खाओ। दूसरे का गला काटने वाले को उसका बदला देना पड़ता है। यह जान कर समझदार व्यक्ति प्रतिफल में अपना गला नहीं कटाता। दोनों ही धर्मों के मार्ग दर्शक निर्दयी हो चुके हैं। हिन्दूओं के गुरु कहते हैं कि हम तो एक झटके से बकरा आदि का गला छेदन करते हैं, जिससे प्राणी को कष्ट नहीं होता, इसलिए हम दोषी नहीं हैं तथा मुसलमान धर्म के मार्ग दर्शक कहते हैं हम धीरे-धीरे हलाल करते हैं जिस कारण हम दोषी नहीं। परमात्मा कबीर साहेब जी ने कहा यदि आपका तथा आपके परिवार के सदस्य का गला किसी भी विधि से काटा जाए तो आपको कैसा लगेगा ? (साखी 37 से 40)

बात करते हैं पुण्य की, करते हैं घोर अधर्म। दोनों नरक में पड़हीं, कुछ तो करो शर्म।।

कबीर परमेश्वर ने कहा -

हम मुहम्मद को सतलोक ले गया। इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो।
उल्ट मुहम्मद महल पठाया, गुज बीरज एक कलमा लाया।।
रोजा, बंग, नमाज दई रे। बिसमिल की नहीं बात कही रे।।

भावार्थ:- नबी मुहम्मद को मैं(कबीर परमेश्वर) सतलोक ले कर गया था परन्तु वहाँ न रहने की इच्छा व्यक्त की, वापिस मुहम्मद जी को शरीर में भेज दिया। नबी मुहम्मद जी ने रोजा (व्रत) बंग (ऊँची आवाज में प्रभु स्तुति करना) तथा पाँच समय की नमाज करना तो कहा था परन्तु गाय आदि प्राणियों को बिस्मिल करने(मारने) को नहीं कहा।

उपरोक्त वार्ता सुनकर शेखतकी पीर ने क्रोध करते हुए कहा कि तू क्या जाने र्कुआन शरीफ तथा हमारे नबी के विषय में तू तो अशिक्षित है। हमारे धर्म के विषय में झूठा प्रचार करके भ्रम फैला रहा है। मैं बताता हूँ पवित्र र्कुआन शरीफ की अमृत वाणी कैसे प्राप्त हुई। यह कोई बाद में लिखा ग्रंथ नहीं है। यह तो अल्लाह (प्रभु) द्वारा बोली वाणी साथ की साथ लिखी गई थी। शेखतकी ने (जो दिल्ली के महाराजा सिकंदर लौधी का धार्मिक गुरु तथा पूरे भारत के मुसलमान शेखतकी की प्रत्येक आज्ञा का पालन करते थे) ने कहा कि सुन गंवार हमारे मुहम्मद नबी का जीवन वृतांत।

हजरत मुहम्मद जी का जीवन चरित्र

हजरत मुहम्मद के बारे में श्री मुहम्मद इनायतुल्लाह सुब्हानी के विचार जीवनी हजरत मुहम्मद (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) लेखक हैं - मुहम्मद इनायतुल्लाह सुब्हानी, मूल किताब - मुहम्मदे (अर्बी) से, अनुवादक - नसीम गाजी फलाही,

प्रकाशक - इस्लामी साहित्य ट्रस्ट प्रकाशन नं. 81 के आदेश से प्रकाशन कार्य किया है। मर्कजी मक्तबा इस्लामी पब्लिशर्स, डी-307, दावत नगर, अबुल फज्ल इन्कलेव जामिया नगर, नई दिल्ली-110025,

श्री हाशिम के पुत्र शौबा थे। उन्हीं का नाम अब्दुल मुत्तलिब पड़ा। क्योंकि जब मुत्तलिब अपने भतीजे शौबा को अपने गाँव लाया तो लोगों ने सोचा कि मुत्तलिब कोई दास लाया है। इसलिए श्री शौबा को श्री अब्दुल मुत्तलिब के उर्फ नाम से अधिक जाना जाने लगा। श्री अब्दुल मुत्तलिब को दस पुत्र प्राप्त हुए। किसी कारण से अब्दुल मुत्तलिब ने अपने दस बेटों में से एक बेटे की कुर्बानी अल्लाह के निमित्त देने का प्रण लिया।

देवता को दस बेटों में से कौन सा बेटा कुर्बानी के लिए पसंद है। इसके लिए एक मन्दिर (काबा) में रखी मूर्तियों में से बड़े देव की मूर्ति के सामने दस तीर रख दिए तथा प्रत्येक पर एक पुत्र का नाम लिख दिया। जिस तीर पर सबसे छोटे पुत्र अब्दुल्ला का नाम लिखा था वह तीर मूर्ति की तरफ हो गया। माना गया कि देवता को यही पुत्र कुर्बानी के लिए स्वीकार है। श्री अब्दुल्ला(नबी मुहम्मद के पिता) की कुर्बानी देने की तैयारी होने लगी। पूरे क्षेत्र के धार्मिक लोगों ने अब्दुल मुत्तल्लिब से कहा ऐसा न करो। हा-हा कार मच गया। एक पुजारी में कोई अन्य आत्मा बोली। उसने कहा कि ऊंटों की कुर्बानी देने से भी काम चलेगा। इससे राहत की स्वांस मिली। उसी शक्ति ने उसके लिए एक अन्य गाँव में एक औरत जो अन्य मन्दिरों के पुजारियों की दलाल थी के विषय में बताया कि वह फैसला करेगी कि कितने ऊंटों की कुर्बानी से अब्दुल्ला की जान अल्लाह क्षमा करेगा। उस औरत ने कहा कि जितने ऊंट एक जान की रक्षा के लिए देते हो अन्य दस और जोड़ कर तथा अब्दुल्ला के नाम की पर्ची तथा दस ऊंटों की पर्ची डाल कर जाँच करते रहो। जब तक ऊंटों वाली पर्ची न निकले, तब तक करते रहो। इस प्रकार दस.2 ऊंटों की संख्या बढ़ाते रहे तब सौ ऊंटों के बाद ऊंटों की पर्ची निकली, उससे पहले अब्दुल्ला की पर्ची निकलती रही। इस प्रकार सौ ऊटों की कुर्बानी(हत्या) करके बेटे अब्दुल्ला की जान बचाई। जवान होने पर श्री अब्दुल्ला का विवाह भक्तमति आमिनी देवी से हुआ। जब हजरत मुहम्मद माता आमिनी जी के गर्भ में थे। पिता श्री अब्दुल्ला जी की मृत्यु किसी दूर स्थान पर हो गई। वहीं पर उनकी कब्र बनवा दी। जिस समय बालक मुहम्मद की आयु छः वर्ष हुई तो माता आमिनी देवी अपने पति की कब्र देखने गई थी। उसकी भी मृत्यु रास्ते में हो गई। छः वर्षिय बालक मुहम्मद जी यतीम (अनाथ) हो गए। (उपरोक्त विवरण पूर्वोक्त पुस्तक ‘जीवनी हजरत मुहम्मद‘ पृष्ठ 21 से 29 तथा 33-34 पर लिखा है)।

हजरत मुहम्मद जी जब 25 वर्ष के हुए तो एक चालीस वर्षीय विधवा खदीजा नामक स्त्राी से विवाह हुआ। खदीजा पहले दो बार विधवा हो चुकी थी। तीसरी बार हजरत मुहम्मद से विवाह हुआ। वह बहुत बड़े धनाङ्य घराने की औरत थी।(यह विवरण पूर्वोक्त पुस्तक के पृष्ठ 46, 51-52 पर लिखा है)।

हजरत मुहम्मद जी को संतान रूप में खदीजा जी से तीन पुत्र तथा चार बेटियाँ प्राप्त हुई। तीनों पुत्र 1. कासिम, 2. तय्यब 3. ताहिर आप (हजरत मुहम्मद जी) की आँखों के सामने मृत्यु को प्राप्त हुए। केवल चार लड़कियां शेष रहीं। (पूर्वोक्त पुस्तक के पृष्ठ 64 पर यह उपरोक्त विवरण लिखा है)।

एक समय प्रभु प्राप्ति की तड़फ में हजरत मुहम्मद जी नगर से बाहर एक गुफा में साधना कर रहे थे। एक जिबराईल नामक फरिश्ते ने हजरत मुहम्मद जी का गला घोंट-2 कर बलात् र्कुआन शरीफ का ज्ञान समझाया। हजरत मुहम्मद जी को डरा धमका कर अव्यक्त माना जाने वाले प्रभु का ज्ञान दिया गया। उस जिबराईल देवता के डर से हजरत मुहम्मद जी ने वह ज्ञान याद किया। इस प्रकार मुहम्मद साहेब जी को काल के भेजे फरिश्ते द्वारा इस ज्ञान को जनता में बताने को बाध्य किया गया। हजरत मुहम्मद जी ने अपनी पत्नी खदीजा जी को बताया कि मैं जब गुफा में बैठा था तो एक फरिश्ता आया। उसके हाथ में एक रेशम का रूमाल था। उस पर कुछ लिखा था। फरिश्ते ने मेरा गला घोंट कर कहा इसे पढ़ो। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे प्राण निकलने वाले हैं। पूरे शरीर को भींच कर जबरदस्ती मुझे पढ़ाना चाहा। ऐसा दो बार किया। तीसरी बार फिर कहा पढ़ो, मैं अशिक्षित होने के कारण नहीं पढ़ पाया। अब की बार मुझे लगा कि यह और ज्यादा पीड़ा देगा। मैंने कहा क्या पढूं। तब उसने मुझे र्कुआन की एक आयत पढ़ाई। (यह विवरण पूर्वोक्त पुस्तक के पृष्ठ 67 से 75 तक लिखा है तथा पृष्ठ 157 से 165 तक लिखा है)।

फरिश्ते जिबराईल ने नबी मुहम्मद जी का सीना चाक किया उसमें शक्ति उड़ेल दी और फिर सील दिया तथा एक खच्चर जैसे जानवर पर बैठा कर ऊपर ले गया। वहाँ नबियों की जमात आई, उनमें हजरत मुसा जी, ईसा जी और इब्राहीम जी आदि भी थे। जिनको हजरत मुहम्मद जी ने नमाज पढाई।

वहाँ बाबा आदम जी भी थे जो कभी हँस रहे थे और कभी रो रहे थे। फरिश्ते जिबराईल ने हजरत मुहम्मद जी को बताया यह बाबा आदम जी हैं। रोने तथा हँसने का कारण था कि दाईं ओर स्वर्ग में नेक संतान थी जो सुखी थी जिसे देख कर बाबा आदम हँस रहे थे तथा बाईं ओर निकम्मी संतान नरक में कष्ट भोग रही थी, जिसे देखकर रो रहे थे। जिसके कारण बाबा आदम ऊपर के लोक में भी पूर्ण सुखी नहीं थे।

फिर सातवें आसमान पर गए। पर्दे के पीछे से आवाज आई की प्रति दिन पचास निमाज किया करे। वहाँ से पचास नमाजों से कम करवाकर केवल पाँच नमाज ही अल्लाह से प्राप्त करके नबी मुहम्मद वापिस आ गए।

(पृष्ठ नं. 307 से 315) हजरत मुहम्मद जी द्वारा मुसलमानों को कहा कि खून-खराबा मत करना, ब्याज तक भी नहीं लेना तथा 63 वर्ष की आयु में सख्त बीमार होकर तड़पते-2 भी नमाज की तथा घर पर आकर असहनीय पीड़ा में सारी रात तड़फ कर प्राण त्याग दिए।

(पृष्ठ नं. 319) बाद में उत्तराधिकारी का झगड़ा पड़ा। फिर हजरत अबू बक्र को खलीफा चुना गया। शेखतकी पीर ने बताया कि अल्लाह तो सातवें आसमान पर रहता है वह तो निराकार है। कबीर जी ने कहा शेख जी एक ओर तो आप भगवान को निराकार कह रहे हो। दूसरी ओर प्रभु को सातवें आसमान पर एक देशीय सिद्ध कर रहे हो। जब परमात्मा सातवें आसमान पर रहता है तो वह साकार हुआ।

शेखतकी से उपरोक्त जीवन परिचय हजरत मुहम्मद साहेब जी का सुनकर परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा शेखतकी जी आपने बताया कि हजरत मुहम्मद जी जब माता के गर्भ में थे उस समय उनके पिता श्री अब्दुल्लाह जी की मृत्यु हो गई, छः वर्ष के हुए तो माता जी की मृत्यु। आठ वर्ष के हुए तो दादा अब्दुल मुत्तलिब चल बसा। यतीमी का जीवन जीते हुए हजरत मुहम्मद जी की 25 वर्ष की आयु में दो बार पहले विधवा हो चुकी 40 वर्षिय खदीजा से विवाह हुआ। तीन पुत्र तथा चार पुत्रियाँ संतान रूप में हुई। हजरत मुहम्मद जी को जिबराईल नामक फरिश्ते ने गला घोंट-घोंट कर जबरदस्ती डरा धमका कर र्कुआन शरीफ (मजीद) का ज्ञान तथा भक्ति विधि (निमाज आदि) बताई जो तुम्हारे अल्लाह द्वारा बताई गई थी। फिर भी हजरत मुहम्मद जी के आँखों के तारे तीनों पुत्र (कासिम, तय्यब तथा ताहिर) मृत्यु को प्राप्त हुए। विचार करें जिस अल्लाह के भेजे रसूल (नबी) के जीवन में कहर ही कहर (महान कष्ट) रहा। तो अन्य अनुयाईयों को र्कुआन शरीफ व मजीद में वर्णित साधना से क्या लाभ हो सकता है? हजरत मुहम्मद 63 वर्ष की आयु में दो दिन असहाय पीड़ा के कारण दर्द से बेहाल होकर मृत्यु को प्राप्त हुआ। जिस पिता के सामने तीनों पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो जाऐं, उस पिता को आजीवन सुख नहीं होता। प्रभु की भक्ति इसीलिए करते हैं कि परिवार में सुख रहे तथा कोई पाप कर्म दण्ड भोग्य हो, वह भी टल जाए। आप के अल्लाह द्वारा दिया भक्ति ज्ञान अधूरा है। इसीलिए सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 तक में कहा है कि जो गुनाहों को क्षमा करने वाला कबीर नामक अल्लाह है उसकी पूजा विधि किसी तत्त्वदर्शी (बाखबर) से पूछ देखो। कबीर परमेश्वर ने कहा शेखतकी मैं स्वयं वही कबीर अल्लाह हूँ। मेरे पास पूर्ण मोक्ष दायक, सर्व पाप नाशक भक्ति विधि है। इसीलिए आपके समक्ष बादशाह सिकंदर लोधी जी पाप के कारण भोग रहे कष्ट से मुक्त होकर सुख की सांस ले रहे हैं। जो आपकी भक्ति पद्धति से नहीं हो पाया।

जैसा कि शेखतकी जी आपने बताया कि सब मनुष्यों का पिता हजरत आदम ऊपर आसमान पर जिसको आप जन्नत (स्वर्ग) कहते हो, वहाँ पर (जहाँ जिस लोक में जिबराईल फरिश्ता हजरत मोहम्मद को लेकर गया था) कभी रो रहा था, कभी हंस रहा था। क्योंकि उसकी निकम्मी संतान नरक में कष्ट उठा रही थी। उन्हें देखकर रो रहा था तथा अच्छी संतान जो स्वर्ग में सुखी थी, उन्हें देखकर जोर-जोर से हंस रहा था।

विचारणीय विषय है कि पवित्र ईसाई धर्म तथा पवित्र मुसलमान धर्म के प्रमुख बाबा आदम ने जो साधना की उसके प्रतिफल में जिस लोक में पहुँचा है वहाँ पर भी चैन (शान्ति) से नहीं रह रहा। इस लोक में भी बाबा आदम जैसे पुण्यात्माओं के प्रथम दोनों पुत्रों में राग-द्वेष भरा था जिस कारण बड़े भाई ने छोटे की हत्या कर दी। यहाँ पृथ्वी पर भी बाबा आदम महादुःखी ही रहे क्योंकि बड़े भाई ने छोटे को मार दिया, बड़ा घर त्याग कर चला गया। सैकड़ों वर्षों पश्चात् बाबा आदम को एक पुत्र हुआ। जिस से भक्ति मार्ग चला है। जिस किसी के दोनों पुत्र ही बिछुड़ जाए वह पिता सुखी नहीं हो सकता। यही दशा बाबा आदम जी की हुई थी। सैकड़ों वर्ष दुःख झेलने के पश्चात् एक नेक पुत्र प्राप्त हुआ। फिर बाबा आदम उस लोक में भी इसी कष्ट को झेल रहे हैं। जहाँ जाने के लिए आप भक्ति कर रहे हो, सर्व नबी जो पहले पृथ्वी पर अल्लाह के भेजे आए थे, वे (हजरत ईसा, हजरत अब्राहिम, हजरत मूसा आदि) भी उसी स्थान (लोक) में अपनी साधना से पहुँचे। वास्तव में वह पितर लोक है। उसमें अपने-अपने पूर्वजों के पास चले जाते हैं। इसी प्रकार हिन्दूओं का भी ऊपर वही पितर लोक है। जिनका संस्कार पितर बनने का होता है वह पितर योनीधारण करके उस पितर लोक में रहता है। फिर पितर वाला जीवन भोग कर फिर भूत तथा अन्य पशु व पक्षियों की योनियों को भी भोगता है। यह तो पूर्ण मोक्ष तथा सुख प्राप्ति नहीं हुई। अन्य वर्तमान के साधकों को क्या उपलब्धि होगी ?

पवित्र बाईबल में लिखा है कि हजरत आदम के काईन तथा हाबिल दो पुत्र थे। हाबिल भेड़ बकरियाँ पाल कर निर्वाह कर रहा था तथा काईन खेती करता था। एक दिन काईन अपनी पहली फसल का कुछ अंश प्रभु के लिए ले गया। प्रभु ने काईन की भेंट स्वीकार नहीं की क्योंकि काईन का दिल पाक नहीं था। हाबिल अपने भेड़ का पहलौंठा मेंमना(बच्चा) भेंट के लिए लेकर प्रभु के पास गया, जो प्रभु ने स्वीकार कर लिया। इस बात से काईन क्रोधित हो गया। वह अपने छोटे भाई हाबिल को बहका कर जंगल में ले गया, वहाँ उसकी हत्या कर दी। प्रभु ने पूछा काईन तेरा भाई कहाँ गया? काईन ने कहा मैं क्या उसके पीछे-पीछे फिरता हूँ ? मुझे क्या मालूम? तब प्रभु ने कहा कि तुने अपने भाई के खून से पृथ्वी को रंगा है। अब मैं तुझे शाप देता हूँ कि तू रोजी के लिए भटकता रहेगा।

विचार:- विचार करने योग्य है कि जहाँ से दोनों पवित्र धर्मों (मुसलमान तथा ईसाई) के पूर्वज मुखिया की जीवनी प्रारम्भ होती है वहीं से हृदय विदारक घटनाऐं प्रारम्भ हो गई।

वास्तव में हजरत आदम के शरीर में कोई पितर आकर प्रवेश करता था। वही माँस खाने का आदी होने के कारण पवित्र आत्माओं को गुमराह करता था कि अल्लाह (प्रभु) को भेड़ के बच्चे की भेंट स्वीकार है। दोनों भाईयों का झगड़ा करा दिया। हजरत आदम जी के परिवार को बर्बाद कर दिया।

पवित्र बाईबल में साकार पूर्ण परमात्मा के विषय में वर्णन उत्पत्ति ग्रन्थ, पृष्ठ नं. 1 से 3

परमेश्वर ने छः दिन में सृष्टि रची तथा सातवें दिन विश्राम किया, प्रभु ने पाँच दिन तक अन्य रचना की, फिर छटवें दिन ईश्वर ने कहा कि हम मनुष्य को अपना ही स्वरूप बनायेंगे। फिर परमेश्वर ने मनुष्य को अपना ही स्वरूप बनाया, नर-नारी करके उसकी सृष्टि की। फिर ईश्वर ने मनुष्यों के खाने के लिए केवल फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए। जो तुम्हारे भोजन के लिए हैं। छः दिन में पूरा कार्य करके परमेश्वर ऊपर तख्त पर जा विराजा अर्थात् विश्राम किया। ईश्वर ने प्रथम आदम बनाया फिर उसकी पसली निकाल कर नारी (हव्वा) बनाई तथा दोनों को एक वाटिका में छोड़कर तख्त पर जा बैठे। फिर पृष्ठ नं. 8 पर लिखा है कि ईश्वर ने मनुष्य जाति के खाने के लिए फलदार पेड़ तथा बीजदार पौधे बनाए और वन प्राणियों के लिए घास व पौधे बनाए। भगवान ने मनुष्य को अपना प्रति रूप बनाया। इससे स्वसिद्ध है कि भगवान (अल्लाह) आकार में है और वह मनुष्य जैसा है। वह पूर्ण परमात्मा तो यहाँ तक रचना छः दिन में करके सातवंे दिन अपने सत्यलोक में तख्त पर विराजमान हो गया। इसके बाद अव्यक्त प्रभु (काल/ज्योति निरंजन) की भूल-भुलईयाँ प्रारम्भ हो गई।

पवित्र बाईबल में अव्यक्त साकार प्रभु (काल) के विषय में वर्णन

पूर्ण परमात्मा ने छः दिन में सृष्टि रचना करके विश्राम किया। तत्पश्चात् अव्यक्त प्रभु (काल) ने बागडोर संभाल ली। हजरत आदम तथा हजरत हव्वा (जो श्री आदम जी की पत्नी थी) को कहा कि इस वाटिका में लगे हुए फलों को तुम खा सकते हो। लेकिन ये जो बीच वाले फल हैं इनको मत खाना, अगर खाओगे तो मर जाओगे। परमेश्वर ऐसा कह कर चला गया।

उसके बाद एक सर्प आया और कहा कि तुम ये बीच वाले फल क्यों नहीं खा रहे हो? हव्वा जी ने कहा कि भगवान (अल्लाह) ने हमें मना किया है कि अगर तुम इनको खाओगे तो मर जाओगे, इन्हें मत खाना। सर्प ने फिर कहा कि भगवान ने आपको बहकाया हुआ है। वह नहीं चाहता है कि तुम प्रभु के सदृश ज्ञानवान हो जाओ। यदि तुम इन फलों को खा लोगे तो तुम्हें अच्छे और बुरे का ज्ञान हो जाएगा। आपकी आँखों पर से वह पर्दा हट जाएगा जो अज्ञानता का प्रभु ने आपके ऊपर डाल रखा है। यह बात सर्प ने हव्वा को कही जो कि आदम की पत्नी थी। हव्वा ने अपने पति हजरत आदम से कहा कि हम ये फल खायेंगे और हमें भले-बुरे का ज्ञान हो जाएगा। ऐसा ही हुआ। उन्होंने वह फल खा लिया तो उनकी आँखें खुल गई तथा वह अंधेरा हट गया जो भगवान ने उनके ऊपर अज्ञानता का पर्दा डाल रखा था। जब उन्होंने देखा कि हम दोनों निवस्त्र हैं तो शर्म आई और अंजीर के पत्तों को तोड़ कर अपने पर्दो पर बांधा।

कुछ दिनों के बाद जब शाम के समय घूमने के लिए प्रभु आया तो पूछा कि तुम कहाँ हो? आदम जी तथा हव्वा जी ने कहा कि हम छुपे हुए है, क्योंकि हम निवस्त्र हैं। भगवान ने कहा कि क्या तुमने उस बीच वाले फल को खा लिया? आदम ने कहा कि हाँ जी और उसके खाने के बाद हमें महसूस हुआ कि हम निवस्त्र हैं। प्रभु ने पूछा कि तुम्हें किसने बताया कि ये फल खाओ। आदम ने कहा कि हमारे को सर्प ने बताया और हमने वह खा लिया। उसने मेरी पत्नी हव्वा को बहका दिया और हमने उसके बहकावे में आकर ये फल खा लिया।

फिर यहोवा प्रभु ने आदम तथा उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अंगरखे पहना दिए।

अनेक प्रभुओं का प्रमाण

3:22. फिर यहोवा प्रभु ने (उत्पत्ति अध्याय 3/22 तथा 17/1 तथा 18/1 से 5 तथा 16 से 23 तथा 26-29-32-33 में) कहा मनुष्य भले-बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है। इसलिए ऐसा न हो कि यह जीवन के वृक्ष वाला फल भी तोड़कर खा ले और सदा जीवित रहे। उत्पत्ति ग्रन्थ के अध्याय 17 श्लोक 1 (17:1) में कहा है कि जब अब्राहिम निन्यानवे (99) वर्ष का हो गया तब यहोवा ने उसको दर्शन देकर कहा ‘‘मैं सर्वशक्तिमान हूँ। मेरी उपस्थिति में चल और सिद्ध होता जा’’ फिर उत्पत्ति ग्रन्थ के अध्याय 18 श्लोक 1 से 10 तथा अध्याय 19 श्लोक 1 से 25 में तीन प्रभुओं का प्रमाण है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि आदम जी का प्रभु कह रहा है कि आदम को भले बुरे का ज्ञान होने से हम में से एक के समान हो गया है। इससे सिद्ध हुआ कि ऐसे प्रभु और भी हैं जब कि इसाई धर्म के श्रद्धालु कहते है परमात्मा एक है तथा यह भी प्रमाणित हुआ कि परमात्मा साकार है मनुष्य जैसा है।

उत्पत्ति ग्रन्थ अध्याय 3 के श्लोक 23. व 24. इसलिए प्रभु ने आदम व उसकी पत्नी को अदन के उद्यान से निकाल दिया। काल प्रभु ने उनको उस वाटिका से निकाल दिया और कहा कि अब तुम्हें यहाँ नहीं रहने दूँगा और तुझे अपना पेट भरने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ेगा और औरत को श्राप दिया कि तू हमेशा आदमी के अधीन रहेगी।

{विशेष:- श्री मनु जी के पुत्र इक्ष्वाकु तथा इसी वंश में राजा नाभीराज हुए। राजा नाभीराज के पुत्र श्री ऋषभदेव जी हुए जो पवित्र जैन धर्म के प्रथम तीरथंकर माने जाते हैं। यही श्री ऋषभदेव जी की पवित्रात्मा बाबा आदम हुए। जैन धर्म के सद्ग्रन्थ ‘‘आओ जैन धर्म को जाने‘‘ पृष्ठ 154 में लिखा है।} आदम व हव्वा के संयोग से दो पुत्र उत्पन्न हुए। एक का नाम काईन तथा दूसरे का नाम हाबिल रखा। काईन खेती करता था। हाबिल भेड़-बकरियाँ चराया करता था। काईन कुछ धुर्त था परन्तु हाबिल ईश्वर पर विश्वास करने वाला था। काईन ने अपनी फसल का कुछ अंश प्रभु को भेंट किया। प्रभु ने अस्वीकार कर दिया। फिर हाबिल ने अपने भेड़ के पहले मेमने को प्रभु को भेंट किया, प्रभु ने स्वीकार किया। {यदि बाबा आदम में प्रभु बोल रहा होता तो कहता कि बेटा हाबिल मैं तेरे से प्रसन्न हूँ। आपने जो मैमना भेंट किया यह आपकी प्रभु के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। यह आप ही ले जाईये और इसे बेच कर धर्म (भण्डारा) कीजिए और अपनी भेड़ों की ऊन उतार कर रोजी-रोटी चलाईये तथा प्रभु में विश्वास रखिये। यह बाबा आदम के शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके कोई प्रेत व पितर बोल रहा था तथा इसी प्रकार पवित्र बाईबल में माँस खाने का प्रावधान पितरों ने किसी नबी में बोल कर करवाया है।} इससे काईन को द्वेष हुआ तथा अपने छोटे भाई को मार दिया। कुछ समय के बाद आदम व हव्वा से एक पुत्र हुआ उसका नाम सेत रखा। सेत को फिर पुत्र हुआ उसका नाम एनोस रखा। उस समय से लोग प्रभु का नाम लेने लगे।

विचार करें - जहाँ से पवित्र ईसाई व मुसलमान धर्म प्रथम पुरूष के वंश की शुरूआत हुई वहीं से मार-काट लोभ और लालच द्वेष परिपूर्ण है। आगे चलकर इसी परंपरा में ईसा मसीह जी का जन्म हुआ। इनकी पूज्य माता जी का नाम मरियम तथा पूज्य पिता जी का नाम यूसुफ था। परन्तु मरियम को गर्भ एक देवता से रहा था। इस पर यूसुफ ने आपत्ति की तथा मरियम को त्यागना चाहा तो स्वपन में (फरिश्ते) देवदूत ने ऐसा न करने को कहा तथा यूसुफ ने डर के मारे मरियम का त्याग न करके उसके साथ पति-पत्नी रूप में रहे। देवता से गर्भवती हुई मरियम ने ईसा को जन्म दिया। हजरत ईसा से पवित्र ईसाई धर्म की स्थापना हुई। ईसा मसीह के नियमों पर चलने वाले भक्त आत्मा ईसाई कहलाए तथा पवित्र ईसाई धर्म का उत्थान हुआ।

प्रमाण के लिए कुरान शरीफ में सूरः मर्यम-19 में तथा पवित्र बाईबल में मती रचित सुसमाचार मती=1:25 पृष्ठ नं. 1-2 पर।

हजरत ईसा जी को भी पूर्ण परमात्मा सत्यलोक से आकर मिले तथा एक परमेश्वर का मार्ग समझाया। इसके बाद ईसा जी एक ईश्वर की भक्ति समझाने लगे। लोगों ने बहुत विरोध किया। फिर भी वे अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। परन्तु बीच-बीच में ब्रह्म(काल/ज्योति निरंजन) के फरिश्ते हजरत ईसा जी को विचलित करते रहे तथा वास्तविक ज्ञान को दूर रखा। हजरत यीशु का जन्म तथा मृत्यु व जो जो भी चमत्कार किए वे पहले ब्रह्म(ज्योति निरंजन) के द्वारा निर्धारित थे। यह प्रमाण पवित्र बाईबल में है कि एक व्यक्ति जन्म से अंधा था। वह हजरत यीशु मसीह के पास आया। हजरत जी के आशीर्वाद से उस व्यक्ति की आँखें ठीक हो गई। शिष्यों ने पूछा हे मसीह जी इस व्यक्ति ने या इसके माता-पिता ने कौन-सा ऐसा पाप किया था जिस कारण से यह अंधा हुआ तथा माता-पिता को अंधा पुत्र प्राप्त हुआ। यीशु जी ने कहा कि इसका कोई पाप नहीं है जिसके कारण यह अंधा हुआ है तथा न ही इसके माता-पिता का कोई पाप है जिस कारण उन्हें अंधा पुत्र प्राप्त हुआ। यह तो इसलिए हुआ है कि प्रभु की महिमा प्रकट करनी है। भावार्थ यह है कि यदि पाप होता तो हजरत यीशु आँखे ठीक नहीं कर सकते थे। यह सब काल ज्योति निरंजन (ब्रह्म) का सुनियोजित जाल है। जिस कारण उसके द्वारा भेजे अवतारों की महिमा बन जाए तथा आस पास के सभी प्राणी उस पर आसक्त होकर उसके द्वारा बताई ब्रह्म साधना पर अटल हो जाऐं। जब परमेश्वर का संदेशवाहक आए तो कोई भी विश्वास न करे। जैसे हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पितर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। उसके अवतार की महिमा बन जाती है। या कोई साधक पहले का भक्ति युक्त होता है। उससे भी ऐसे चमत्कार उसी की कमाई से करवा देता है तथा उस साधक की महिमा करवा कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।

इसी तरह का उदाहरण पवित्र बाईबल ‘शमूएल‘ नामक अध्याय 16:14-23 में है कि शाऊल नामक व्यक्ति को एक प्रेत दुःखी करता था। उसके लिए बालक दाऊद को बुलाया जिससे उसको कुछ राहत मिलती थी। क्योंकि हजरत दाऊद भी ज्योति निरंजन का भेजा हुआ पूर्व शक्ति युक्त साधक पूर्व की भक्ति कमाई वाला था। जिसको ‘जबूर‘ नामक किताब ज्योति निरंजन/ब्रह्म ने बड़ा होने पर उतारी।

हजरत ईसा मसीह की मृत्यु 30 वर्ष की आयु में हुई जो पूर्व ही निर्धारित थी। स्वयं ईसा जी ने कहा कि मेरी मृत्यु निकट है तथा तुम (मेरे बारह शिष्यों) में से ही एक मुझे विरोधियों को पकड़वाएगा। उसी रात्रि में सर्व शिष्यों सहित ईसा जी एक पर्वत पर चले गए। वहाँ उनका दिल घबराने लगा। अपने शिष्यों से कहा कि आप जागते रहना। मेरा दिल घबरा रहा है। मेरा जी निकला जा रहा है। मुझे सहयोग देना। ऐसा कह कर कुछ दूरी पर जाकर मुंह के बल पृथ्वी पर गिरकर प्रार्थना की (38,39), वापिस चेलों के पास लौटे तो वे सो रहे थे। यीशु ने कहा क्या तुम मेरे साथ एक पल भी नहीं जाग सकते। जागते रहो, प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम परीक्षा में फेल न हो जाओ। मेरी आत्मा तो मरने को तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है। इसी प्रकार यीशु मसीह ने तीन बार कुछ दूर जाकर प्रार्थना की तथा फिर वापिस आए तो सभी शिष्यों को तीनों बार सोते पाया। ईसा मसीह के प्राण जाने को थे, परन्तु चेले राम मस्ती में सोए पड़े थे। गुरु जी की आपत्ति का कोई गम नहीं।

तीसरी बार भी सोए पाया तब कहा मेरा समय आ गया है, तुम अब भी सोए पड़े हो। इतने में तलवार तथा लाठी लेकर बहुत बड़ी भीड़ आई तथा उनके साथ एक ईसा मसीह का खास यहूंदा इकसरौती नामक शिष्य था, जिसने तीस रूपये के लालच में अपने गुरु जी को विरोधियों के हवाले कर दिया। (मत्ती 26:24-55 पृष्ठ 42-44)

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पुण्यात्मा ईसा मसीह जी को केवल अपना पूर्व का निर्धारित जीवन काल प्राप्त हुआ जो उनके विषय में पहले ही पूर्व धर्म शास्त्रों में लिखा था। ‘‘मत्ती रचित समाचार‘‘ पृष्ठ 1 पर लिखा है कि याकुब का पुत्र युसूफ था। युसूफ ही मरियम का पति था। मरियम को एक फरिश्ते से गर्भ रहा था। तब हजरत ईसा जी का जन्म हुआ समाज की दृष्टि में ईसा जी के पिता युसूफ थे। (मत्ती 1:1-18)

तीस (30) वर्ष की आयु में ईसा मसीह जी को शुक्रवार के दिन सलीब मौत (दीवार) के साथ एक cross आकार के लकड़ के ऊपर ईसा को खड़ा करके हाथों व पैरों में मेख (मोटी कील) गाड़ दी। जिस कारण अति पीड़ा से ईसा जी की मृत्यु हुई। तीसरे दिन रविवार को ईसा जी फिर से दिखाई देने लगे। 40 दिन (चालीस) कई जगह अपने शिष्यों को दिखाई दिए। जिस कारण भक्तों में परमात्मा के प्रति आस्था दृढ़ हुई। वास्तव में पूर्ण परमात्मा ने ही ईसा जी के रूप में प्रकट होकर प्रभु भक्ति को जीवित रखा था। काल तो चाहता है यह संसार नास्तिक हो जाए। परन्तु पूर्ण परमात्मा ने यह भक्ति वर्तमान समय तक जीवित रखनी थी। अब यह पूर्ण रूप से फैलेगी। उस समय के शासक(गवर्नर) पिलातुस को पता था कि ईसा जी निर्दोष हैं परन्तु फरीसियों अर्थात् मूसा के अनुयाईयों के दबाव में आकर सजा सुना दी थी।

“हजरत ईसा मसीह में देव तथा पितर प्रवेश करके चमत्कार दिखाने का प्रमाण”

एक स्थान पर हजरत ईसा जी ने कहा है कि मैं याकुब (जो मरियम के पति का भी पिता था) से भी पहले था। संसार की दृष्टि में ईसा मसीह का दादा जी याकुब था। ईसा जी नहीं कहते कि मैं याकुब से भी पहले था। इससे सिद्ध है कि ईसा जी में कोई अन्य फरिश्ता बोल रहा था जो प्रेतवत प्रवेश कर जाता था, भविष्यवाणी कर जाता था।

एक और उदाहरण ग्रन्थ बाईबल अध्याय 2 कुरिन्थियों 2:12-17 पृष्ठ 259-260 में स्पष्ट लिखा है कि एक आत्मा किसी में प्रवेश करके बोल रही है। कहा है कि (14) परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हम को जय उत्सव में लिए फिरता है और अपने ज्ञान की सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है। 17. हम उन लोगों में से नहीं हैं जो परमेश्वर के वचनों में मिलावट करते हैं। हम तो मन की सच्चाई और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर की उपस्थिति जान कर मसीह में बोलते हैं।

उपरोक्त विवरण पवित्र बाईबल के अध्याय कुरिन्थियों 2:12 से 18 पृष्ठ 259-260 से ज्यों का त्यों लिखा है। इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं 1. मसीहा (नबी अर्थात् अवतार) में कोई अन्य फरिश्ता बोलकर किताबें लिखाता है। जो प्रभु का भेजा हुआ होता है वह तो प्रभु का संदेश ज्यों का त्यों बिना परिवर्तन किए सुनाता है। 2. दूसरी बात यह भी सिद्ध हुई कि मसीह (नबी) में अन्य आत्मा भी बोलते हैं जो अपनी तरफ से मिलावट करके भी बोलते हैं। यही कारण है कि र्कुआन शरीफ (मजीद) तथा बाईबल आदि में माँस खाने का आदेश अन्य आत्माओं का है, प्रभु का नहीं है।

इन्हीं प्रेतों तथा पित्तरों व फरिश्तों तथा ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने हजरत मुहम्मद जी में प्रवेश करके काल (ब्रह्म/ज्योति निरंजन) तक का अटकल युक्त ज्ञान प्रवेश करके भ्रमित किया हुआ है। न तो र्कुआन शरीफ (मजीद) तथा तौरत, इंजिल आदि का ज्ञान पूर्ण है, न भक्ति विधि पूर्ण है, क्योंकि उपरोक्त सर्व पवित्र पुस्तकों का ज्ञान दाता वही है जो र्कुआन शरीफ (मजीद) का है। जो सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 58 व 59 में कह रहा है कि सर्व सृष्टि रचनहार, सर्व पापों का नाश करने वाला, सर्व का पालन कर्ता कबीर दयालु प्रभु है। उपरोक्त सर्व पुस्तकों तथा र्कुआन शरीफ व मजीद सहित का ज्ञान दाता प्रभु अपनी अल्पज्ञता जता रहा है कि उस कबीर प्रभु के वास्तविक ज्ञान तथा भक्ति मार्ग को किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी संत) से पूछो। इससे सिद्ध है कि र्कुआन शरीफ व अन्य उपरोक्त पुस्तकों में ज्ञान पूर्ण नहीं है।

इसी प्रकार पवित्र हिन्दू धर्म के माने जाने वाले चारों पवित्र वेद तथा पवित्र गीता का ज्ञान दाता ब्रह्म(काल / ज्योति निरंजन) भी कह रहा है कि मेरी भक्ति तथा ब्रह्मा, विष्णु व शिव की साधना व्यर्थ है। इसलिए उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शांति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा। उस परमात्मा की भक्ति विधि तथा पूर्ण ज्ञान के विषय में किसी तत्त्वदर्शी संत की खोज कर, फिर जैसे वह तत्त्वदृष्टा संत साधना बताऐ उसी प्रकार अनन्य मन से कर। फिर गीता ज्ञान दाता प्रभु ने कहा कि मैं भी उसी की शरण में हूँ। (प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10, 13 तथा 17 तथा अथर्ववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मंत्र 1 से 7 तथा गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15, 18, 20 से 23 में, गीता अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 18 श्लोक 62 तथा अध्याय 15 श्लोक 4-17 में)।

“हजरत मुहम्मद जी में काल (ब्रह्म) तथा अन्य देव व पितर प्रवेश करके बोलते थे’’ का प्रमाण

सर्व पवित्र धर्मों के श्रद्धालु वास्तविक ज्ञान तथा भक्ति विधि से वंचित हैं। वह वास्तविक तत्त्वज्ञान तथा भक्ति विधि मैं (कबीर परमेश्वर काशी वाला जुलाहा/धाणक) स्वयं ही बताने आया हूँ। मुझ पर विश्वास करो। और बताता हूँ (परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपने अमृत वचनों को जारी रखते हुए कहा) -

मैंने एक मुल्ला द्वारा र्कुआन शरीफ की कुछ सूरतों का विवरण सुना था, उनमें निम्न विवरण लिखा है - र्कुआन शरीफ अर्थात् र्कुआन मजीद की प्राप्ति कैसे हुई? (र्कुआन शरीफ वाला ज्यों का त्यों विवरण र्कुआन मजीद में है)।

र्कुआन मजीद - तर्जुमा, फतेह मुहम्मद खां साहब जालंधरी, प्रकाशक: महमूद एण्ड कम्पनी, मरोल पाईप लाईन, बम्बई-59, सोल एजेंट, फरीद बुक डिपो, देहली-6

उपरोक्त पुस्तक के: मुकदमा के पृष्ठ 6-7 पर लिखे है -

र्कुआन मजीद के उतरने और संग्रह व संकलन करने के हालात

उपरोक्त पुस्तक र्कुआन मजीद के मुकदमा पृष्ठ 6-7 पर लिखें लेखक के लेख का निष्कर्ष -

र्कुआन मजीद (शरीफ) 23 वर्षों में पूरी लिखी गई। जब हजरत मुहम्मद जी की आयु 40 वर्ष थी उस समय से प्रारम्भ हुई तथा अन्तिम समय 63 वर्ष की आयु तक 23 वर्ष लगातार कभी एक आयत, कभी आधी, कभी दो आयत, कभी 10 आयत, कभी पूरी सूरतें उतरी हैं। इसी को शरीअत में ‘‘बह्य‘‘ कहते हैं।

विद्वानों ने लिखा है ‘‘वह्य (वह्य)‘‘ उतरने के भिन्न-भिन्न तरीके हदीसों में पेश किए हैं।

1. फरिश्ता ‘‘वह्य(वह्य)‘‘ ले कर आता था तो घंटियाँ सी बजती थी। नबी मुहम्मद जी की जान निकलने को हो जाती थी। यह तरीका ज्यादा कष्ट दायक नबी मुहम्मद जी के लिए होता था। यह भी लिखा है कि हजरत मुहम्मद जी नुबूबत के बाद (चालीस वर्ष की आयु से नबी बनने के बाद) रमजान के दिनों में पूरा र्कुआन मजीद (शरीफ) अल्लाह के पास से उस आसमान से जिसे हम देख नहीं सकते हैं अल्लाह (प्रभु) के हुकम (आज्ञा) से उतारा गया अर्थात् उसी अल्लाह के द्वारा बोला गया। इसके बाद हजरत जिबराईल को जिस समय, जिस कदर हुकम (आज्ञा) हुआ, उन्होंने पवित्र कलाम को बिल्कुल वैसा ही बिना किसी परिवर्तन के नबी मुहम्मद जी तक पहुँचाया।

2. कभी फरिश्ता दिल में कोई बात डाल दे।

3. फरिश्ता आदमी के रूप में आकर बात करे।

{नोट - हजरत मुहम्म्द जी की जीवनी में लिखा है कि जिस समय जिब्राईल फरिश्ता प्रथम बार वह्य (वह्य) लेकर आया मनुष्य रूप में दिखाई दिया, तो उसने मुहम्मद जी का गला घोंट कर कहा इसे पढ़ो। हजरत मुहम्मद जी ने बताया कि मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे, वह मेरा गला घोंट रहा हो। मेरे शरीर को दबा रहा हो। ऐसा दो बार किया फिर तीसरी बार फिर कहा पढ़ो। मुझे ऐसा लगा कि वह फिर गला घोटेंगा, इस बार और जोर से भींचेगा, मैं बोला क्या पढ़ूं ? र्कुआन की प्रथम आयत पढ़ाई, वह मुझे याद हो गई। फिर फरिश्ता चला गया, मैं घबरा गया। दिल बैठता जा रहा था। पूरा शरीर थर-थर कांपने लगा। गुफा के बाहर आकर सोचा यह कौन था। फिर वही फरिश्ता आदमी की सूरत में दिखाई दिया, जहाँ देखूं वही दिखाई देने लगा। ऊपर, नीचे, दांए, बांए सब ओर। घर आकर चादर ओढ़कर लेट गया। सारा शरीर पसीने से भीगा हुआ था। मुझे डर है कि खदीजा कहीं मर न जाऊँ। फिर हजरत मुहम्मद जी ने अपनी पत्नी खदीजा को सारी बात बताई, फिर एक ‘बरका‘ नामक व्यक्ति ने हजरत मुहम्मद जी से सारी बातें सुन कर कहा आप ‘नबी‘ बनोगे। यही फरिश्ता मूसा जी के पास भी आता था। उपरोक्त विवरण से तो सिद्ध होता है कि फरिश्ता आदमी रूप में वह्य लाता था तो भी हजरत मुहम्मद जी को बहुत कष्ट हुआ करता।}

4. अल्लाह तआला जागते में नबी मुहम्मद (सल्ल) से कलाम फरमाए। भावार्थ है कि आकाशवाणी करके ब्रह्म स्वयं बोलता था।

5. अल्लाह तआला सपने की हालत में कलाम फरमाए।

6. फरिश्ता सपने की हालत में आकर कलाम करे(इस छठी व पाँचवी प्रकार पर विवाद है, शेष उपरोक्त र्कुआन मजीद(शरीफ) के उतरने की 4 सही हैं।) पृष्ठ 29 पर लिखा है कि कभी स्वयं ‘‘वह्य(वह्य)‘‘ आती थी। भावार्थ है कि जैसे कोई प्रेत प्रवेश करके बोलता है। कभी नबी मुहम्मद चादर लपेट कर लेट जाते थे, फिर चादर के अन्दर से बोलते थे।

पवित्र र्कुआन मजीद (शरीफ) के मुकदमा के पृष्ठ 6-7 के लिखे लेख से स्पष्ट है कि जिबराईल नामक फरिश्ते ने तो केवल संदेश वाहक का कार्य किया है। ज्ञान व आदेश देने वाला प्रभु अर्थात् काल भगवान एक देशीय साकार सिद्ध हुआ जो सातवें आसमान पर अव्यक्त रूप में है, जिसे देखा नहीं जा सकता। अव्यक्त का उदाहरण है जैसे सूर्य बादलों के पार होने के कारण अदृश्य (अव्यक्त) होता है। दिन होते हुए भी दिखाई नहीं देता। इसी प्रकार परमात्मा एक देशीय जाने तथा अपनी शक्ति से छुपा है। जिस कारण से उसे निराकार माना है। परन्तु भक्ति की सत्य साधना द्वारा उसे देखा जा सकता है। वह सत्य भक्ति विधि कुरान शरीफ में नहीं है क्योंकि उसके लिए किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी) से जानने को कहा है। र्कुआन शरीफ (मजीद) के ज्ञान दाता ने किसी अन्य कबीर नामक अल्लाह (प्रभु) को सर्व का पालन कर्ता, सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, सर्व के पूजा के योग्य कहा है। र्कुआन शरीफ (मजीद) सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 58 तथा 59 में वर्णन है। जिसमें र्कुआन ज्ञान दाता अल्लाह ने कहा है कि उस उपरोक्त अल्लाह कबीर या खबीर जिसे अल्लाहु अकबर भी कहा जाता है। उसके विषय में मैं(र्कुआन का ज्ञान दाता) नहीं जानता। उसके विषय में किसी बाखबर(तत्त्वदर्शी संत) से पूछो। वह कबीर अल्लाह छः दिन में सृष्टि की उत्पत्ति करके सातवें दिन तख्त पर जा विराजा। इससे यह भी सिद्ध होता है कि पूर्ण परमात्मा कबीर साकार है। यही प्रमाण पवित्र बाईबल ‘‘उत्पत्ति ग्रंथ‘‘ में भी है। हजरत आदम के अल्लाह(प्रभु) ने पूर्ण परमात्मा के द्वारा रची सृष्टि का वर्णन किया है। छठे दिन परमेश्वर ने कहा कि हम मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाएं। प्रभु ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार बनाया। फिर उनके खाने के लिए केवल फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिये। माँस खाने की आज्ञा नहीं दी तथा सातवें दिन विश्राम किया।

“पवित्र ईसाई तथा मुसलमान धर्मों के अनुयाईयों को कर्माधार से लाभ-हानि करने वाले भी (श्री ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) तीन ही देवता” हजरत आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा तथा अन्य प्राणियों व सर्व ब्रह्मण्डों की उत्पत्ति करके र्कुआन व बाईबल बोलने वाले प्रभु को सौंप गया। बाईबल के उत्पत्ति ग्रंथ से भी सिद्ध होता है कि परमात्मा मनुष्य जैसा है। क्योंकि प्रभु ने मनुष्य को अपने जैसा बनाया तथा सात दिन के बाद का वर्णन र्कुआन शरीफ व बाईबल ज्ञान दाता(काल/ज्योति निरंजन) की लीला का है। पवित्र बाईबल में लिखा है कि ‘फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, मनुष्य भले-बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है। इसलिए अब ऐसा न हो कि वह हाथ बढ़ा कर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ कर खा ले और सदा जीवित रहे। परमेश्वर ने उसे अदन के उ़द्यान से निकाल दिया।

उपरोक्त विवरण से यह भी सिद्ध होता है कि जो आदम का प्रभु है ऐसा कोई और भी है तथा साकार है। इसीलिए तो कहा है कि मनुष्य जीवन फल को खाकर हम में से एक के समान हो गया है। क्योंकि बाईबल के उत्पत्ति ग्रन्थ में ही लिखा है कि आदम ने भले-बुरे के ज्ञान वाला फल तोड़ कर खा लिया तो उसे पता चला वह नंगा है। यहोवा परमेश्वर टहलते हुए आ गया। उसने आदम को पुकारा तू कहाँ है? तब आदम ने कहा मैं तेरी आवाज सुनकर छुप गया हूँ, क्योंकि मैं नंगा हूँ। फिर परमेश्वर ने आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा के वस्त्र बनवाए।

विचार करें उपरोक्त विवरण स्वयं सिद्ध कर रहा है कि पूर्ण परमात्मा भी सशरीर मनुष्य जैसे आकार का है तथा अन्य प्रभु भी मनुष्य जैसे आकार के हैं, जिसे पवित्र ईसाई तथा मुसलमान धर्म निराकार मानता है तथा प्रभु एक से अधिक भी हैं।

क्योंकि काल ब्रह्म स्वयं सामने नहीं आता, उसने अपने तीनों पुत्रों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) के द्वारा एक ब्रह्मण्ड का कार्य चला रखा है। हजरत आदम जी भगवान ब्रह्मा के अवतार हैं। हजरत आदम को श्री ब्रह्मा जी ने बहका कर रखा था, उसी ने उसको वहाँ से निकाला था। इसीलिए कहा है कि भले बुरे के ज्ञान वाला फल खाकर आदम हम में से एक के समान हो गया है। क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों देव हैं, हजरत ईसा के अवतार धारण करने के विषय में पवित्र बाईबल में लिखा है कि प्रभु ईश्वर ने पृथ्वी पर बढ़ रहे दुराचार के अन्त के लिए अपने पुत्र को भेजा था, क्योंकि हजरत ईसा जी भगवान विष्णु के अवतार हैं। विष्णु लोक से कोई देव आत्मा का जन्म मरयम के गर्भ से फरिस्ते (देव) द्वारा हुआ था।

“मामरे पर तीनों देवताओं के देखने का प्रमाण”

(इसहाक के जन्म की प्रतिज्ञा)

इसमें लिखा है कि अब्राहम मम्रे (मामरे) के बांजों के बीच कड़ी धूप के समय तम्बू के द्वार पर बैठा था , तब यहोवा ने उसे दर्शन दिया। और उसने आँख उठा कर देखा तो तीन पुरुष उसके सामने खड़े हैं। उन्होंने अब्राहम की प्रार्थना पर खाना खाया तथा वृद्ध अवस्था में पुत्र होने का आशीर्वाद देकर चले गए तथा जाते समय कहा कि हम सदोम आदि नगरों का नाश करने जा रहे हैं। वहाँ के लोग अधर्मी हो गए हैं। अब्राहम ने पूछा क्या आप अधर्मियों के साथ धर्मियों को भी मार डालोगे। प्रभु ने कहा यदि 100 व्यक्ति भी धर्मी होंगे तो भी हम उस नगरी का नाश नहीं करेंगे। ‘‘सदोम आदि नगरों का विनाश‘‘ नामक विषय में लिखा है कि उनमें से दो दूत ‘‘सदोम‘‘ में पहुँचे।सदोम में लूत (लोट) नामक व्यक्ति रहता था। उस गाँव के व्यक्ति बहुत निकम्मे थे। लूत (लोट) ने उन्हें आदर पूर्वक रोका। गाँव वालों ने उन फरिश्तों को आम व्यक्ति जान कर उनके साथ कुकर्म (नर से नर बलात्कार करना) करने के लिए बाहर निकलने को कहा। परन्तु लूत (लोट) ने कहा यह मेरे अतिथि हैं, मैं इन्हें आपको नहीं दे सकता। आप मेरी लड़की को ले लो। इस बात से प्रसन्न फरिश्तों ने सभी निकम्मे व्यक्तियों को अंधा कर दिया तथा लूत(लोट) को उसके परिवार सहित उस गाँव से निकाल कर पूरे गाँव को नष्ट कर दिया। इससे सिद्ध हुआ कि तीनों देवता हैं, जो ब्रह्म के आदेश से सर्व को किए कर्म का फल देते हैं।

उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि तीन देवता हैं। उनमें से कभी दो कभी एक अपने-अपने साधक के पास जाते हैं। यदि कोई तीनों का साधक है तो तीनों भी एक साथ जाते हैं, यदि कोई दो का साधक है तो दो भी दर्शन देते हैं। उपरोक्त प्रमाण से भी सिद्ध होता है कि तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) ही अपने पिता ब्रह्म के आदेशानुसार एक ब्रह्मण्ड में सर्व कार्य करते हैं। भक्ति भाव के व्यक्तियों की कर्म अनुसार रक्षा तथा दुष्कर्म करने वालों का कर्म अनुसार नाश करते हैं। ब्रह्म(अव्यक्त कभी सामने दर्शन न देने वाला) प्रभु उपरोक्त तीनों फरिश्तों (देवताओं) द्वारा अपना आदेश नबियों के पास भिजवाता है तथा आकाशवाणी द्वारा या प्रेतवत प्रवेश करके स्वयं भी आदेश देता है। फरिश्ते तो उसका ज्यों का त्यों आदेश सुनाते हैं। आदेश में कोई परिवर्तन नहीं करते। इससे स्पष्ट हुआ कि पवित्र बाईबल तथा पवित्र र्कुआन सहित चारों कतेबों का ज्ञान दाता प्रभु किसी अन्य कबीर नामक प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है।

विशेष:- र्कुआन शरीफ(मजीद) शूरः बकरः 2(87) आयत 21 से 33 तक उस पूर्ण परमात्मा की महिमा के विषय में वर्णन है तथा आयत 34 से अंत तक अपनी महिमा बताई है तथा अपने ज्ञान अनुसार पूजा विधि बताई है। यह भी स्पष्ट किया है कि मैंने (र्कुआन ज्ञान दाता ने) आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा को स्वर्ग की वाटिका में ठहराया तथा उनको बीच वाले वृक्षों के फल छोड़ कर शेष वृक्षों के फल खाने को कहा। परन्तु उन्होंने सर्प के बहकाने से बीच वाले वृक्षों के फल खा लिये। मैंने उनको जमीन पर दुःखी होने के लिये भेज दिया। (शूरः बकरः 2(87) आयत 35 से 39 तक।)

र्कुआन ज्ञान दाता अल्लाह ने स्पष्ट किया है कि मैंने ही हजरत मुसा को ‘‘तौरत‘‘ किताब उतारी थी तथा मूसा के लिए पत्थर से पानी के झरने निकाले थे(आयत 41, 53, 60)। हम ही मुसा के बाद एक के बाद दूसरा पैगम्बर भेजते रहे तथा ईसा बिन मरियम को खुली निशानियाँ बख्शी तथा रूहुल कुदस(यानि जिब्रील) से उनको मदद दी। (आयत 87)

सार विचार:- उपरोक्त पवित्र र्कुआन शरीफ के विवरण से स्पष्ट हुआ कि बाबा आदम से लेकर हजरत ईसा, हजरत अब्राहम, हजरत दाऊद, हजरत मुसा, हजरत मुहम्मद साहेब तक को पैगम्बर बना कर भेजने वाला खुदा(अल्लाह/प्रभु) एक ही है। उसी ने र्कुआन शरीफ अर्थात् मजीद का ज्ञान बह्य के द्वारा स्वयं प्रेतवत प्रवेश करके या आकाशवाणी करके कहा है या फरिश्तों के माध्यम से हजरत मुहम्मद तक ज्यांे का त्यों पहुँचाया है। वही खुदा सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 58 तथा 59 में कह रहा है कि हे पैगम्बर (हजरत मुहम्मद) पूर्ण परमात्मा कबीर है, परन्तु काफिर लोग मेरी इस बात पर विश्वास नहीं करते। आप उनकी कही बातों को मत मानना मेरे द्वारा दिया यह कुरान शरीफ वाले ज्ञान की दलीलों पर विश्वास करना की कबीर अल्लाह उसी को अल्लाह अक्बरू कहते हैं। इस ज्ञान के समर्थन में काफिरों के साथ संघर्ष करना भावार्थ है कि काफिर लोग कहते हैं कि कबीर अल्लाह नहीं है। आप (हजरत मुहम्मद) कहना कि कबीर अल्लाह है। लड़ना नहीं है। उनकी बातों में नहीं आना हैं (आयत 52) वह (कबीर अल्लाह) वही है जिसने जमीन व आसमान के बीच सर्व रचा, दिन-रात बनाए, परिवार, रिश्तेदार, आदि इन्सान के लिए बनाए तथा जमीन में मीठा पानी आदि पदार्थ प्रदान किए।(आयत 53 से 55) हे पैगम्बर(हजरत मुहम्मद)! मैंने जो कुरान की आयतों द्वारा ज्ञान दिया है उसमें जो कबीर है वह पूर्ण परमात्मा है उस पर विश्वास रखना। काफिर लोग उस कबीर को परमात्मा अल्लाह नहीं मानते। उनकी बातें मत मानना, उनके साथ ज्ञान का संघर्ष करना लड़ना नहीं परन्तु उनकी बातों को स्वीकार नहीं करना। (आयत 52) वह कबीर परमात्मा वही है जिसने सर्व सृष्टि की रचना की है। जिसने परिवार के जन उत्पन्न किए नाते-रिश्ते बनाए। सर्व का पालन करता है। (आयत 53 से 55) हमने तुम्हें खुशखबरी सुनाने (सिर्फ अजाब से) डराने के लिये भेजा है। (आयत 56) और (ऐ पैगम्बर) उस जिंदा पर भरोसा रखो जो कभी मरने वाला नहीं है। {क्योंकि पूर्ण परमात्मा (अल्लाह कबीर) एक जिन्दा महात्मा की वेशभूषा में हजरत मुहम्मद जी को मिला था तथा सतलोक आदि को दिखाया था, परन्तु हजरत मुहम्मद जी ने पूर्ण परमात्मा की बात पर विश्वास नहीं किया था। उसी का वर्णन है।} तारीफ के साथ उसकी पाकी ब्यान करते रहो और वह कबीर अल्लाह अपने बंदो के गुनाहों से खबरदार है तथा वही (ईवादही खबीरा/कबीरा) कबीर परमात्मा अर्थात् अल्लाहू अकबर पूजा के योग्य है। (58) वह कबीर अल्लाह वही है जिसने छः दिन में सर्व ब्रह्मण्डों को रचा तथा सातवें दिन तख्त पर विराजा। वास्तव में वह अल्लाह कबीर रहमान(क्षमा शील) है। उसके विषय में मैं (र्कुआन शरीफ/मजीद का ज्ञान दाता) नहीं जानता। उसकी खबर अर्थात् पूर्ण ज्ञान व भक्ति की विधि किसी बाखबर(तत्त्वदर्शी संत) से पूछो। (आयत 59)

उपरोक्त विवरण से यह भी सिद्ध हुआ कि प्रभु एक नहीं अनेक हैं तथा तीनों देवता (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी) ही तीनों लोकों के प्राणियों को संस्कारवश लाभ व हानि तथा उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार के कारण हैं तथा ब्रह्म(काल) सर्व को धोखा देकर रखता है। पूर्ण परमात्मा कबीर ही सर्व सुखदायक, सर्व के पूजा के योग्य तथा पूर्ण मोक्ष दायक है।

पूज्य कबीर परमेश्वर बता रहे हैं कि मैंने उस मुल्ला जी से कहा कि जिस बाखबर(तत्त्वदृष्टा) संत के लिये आपका अल्लाह संकेत कर रहा है। उस तत्त्वदृष्टा संत द्वारा दिया ज्ञान ही पूर्ण मोक्ष दायक है। वह वास्तविक भक्ति मार्ग न तो हजरत मुहम्मद जी को प्राप्त हुआ, न आप मुल्ला, काजियों व पीरों को। इसलिए आज तक जो भी साधना आप कर रहे हो वह अधूरी है। केवल ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का फैलाया भ्रम जाल है। यह नहीं चाहता कि साधक मेरे जाल से निकल जाए। पूज्य कबीर परमेश्वर ने बताया वह बाखबर (अर्थात् तत्त्वदर्शी संत) मैं हूँ। आप मेरे से उपदेश लो तथा यह तत्त्वज्ञान जो मैं आपको बताऊंगा अन्य भक्ति चाहने वालों को भी समझाओ। यह तो काल है जिसे वेदों में ब्रह्म(क्षर पुरुष/ज्योति निरंजन) कहा जाता है। पूर्ण परमात्मा कोई और है जिसे वेदों में कविर्देव कहा है तथा र्कुआन शरीफ(मजीद) में कबीरन्, कबीरा, खबीरन्, खबीरा आदि कहा है तथा जिसे हजरत मुहम्मद जी ने अल्लाहु अकबर कहा है। वह कबीर अल्लाह मैं हूँ। आप सर्व मेरी आत्मा हो। आपको काल(ब्रह्म) ने भ्रमित किया है।

बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर ने आगे बताया - यह वार्ता सुनकर वह मुल्ला मुझसे अति नाराज हो गया तथा आगे से उसकी कथा में न आने को कहा। पूज्य कबीर परमेश्वर से उपरोक्त विवरण जानकर बादशाह सिंकदर लौधी ने अपने धार्मिक गुरू शेखतकी से कहा ‘‘पीर जी, क्या र्कुआन शरीफ में महाराज कबीर साहेब जी द्वारा बताया विवरण है?’’ शेखतकी ने र्कुआन शरीफ में सूरत फुरकानी 25 आयत 52 से 59 को ध्यान से पढ़ा तथा सत्य को जाना परन्तु मान वश कह दिया कि कबीर जी तो झूठा है। यह क्या जाने पवित्र र्कुआन शरीफ के गूढ रहस्य को। यह कहकर अति नाराजगी व्यक्त करता हुआ उठ कर अपने कमरे में चला गया। बादशाह सिकंदर लौधी भी र्कुआन शरीफ को सुना करता था तो उसे याद आया कि ऐसा वर्णन अवश्य आता है। फिर भी भक्ति मार्ग तथा अरबी भाषा का ज्ञान न होने के कारण पूर्ण विश्वास नहीं हुआ। परन्तु हजरत मुहम्मद जी के जीवन चरित्र से पूर्ण परिचित था। उससे बहुत प्रभावित हुआ तथा कहा कि सच-मुच हजरत मुहम्मद जी के जीवन में कष्ट ही कष्ट रहे हैं।

बादशाह सिकंदर की शंकाओं का समाधान

प्रश्न - बादशाह सिकंदर लोधी ने पूछा, हे परवरदिगार (क). यह ब्रह्म (काल) कौन शक्ति है? (ख). यह सभी के सामने क्यों नहीं आता?

उत्तर - परमेश्वर कबीर साहेब जी ने सिकंदर लोधी बादशाह के प्रश्न ‘क-ख‘ के उत्तर में सृष्टि रचना सुनाई। (कृप्या देखें इसी पुस्तक के पृष्ठ 603 से 670 पर)

(ग). क्या बाबा आदम जैसे महापुरुष भी इसी के जाल में फंसे थे?

ग के उत्तर में बताया कि पवित्र बाईबल में उत्पत्ति विषय में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा मनुष्यों तथा अन्य प्राणियों की रचना छः दिन में करके तख्त अर्थात् सिंहासन पर चला गया। उसके बाद इस लोक की बाग डोर ब्रह्म ने संभाल ली। इसने कसम खाई है कि मैं सबके सामने कभी नहीं आऊँगा। इसलिए सभी कार्य अपने तीनों पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) के द्वारा करवाता रहता है या स्वयं किसी के शरीर में प्रवेश करके प्रेत की तरह बोलता है या आकाशवाणी करके आदेश देता है। प्रेत, पितर तथा अन्य देवों (फरिश्तों) की आत्माऐं भी किसी के शरीर में प्रवेश करके अपना आदेश करती हैं। परन्तु श्रद्धालुओं को पता नहंीं चलता कि यह कौन शक्ति बोल रही है। पूर्ण परमात्मा ने माँस खाने का आदेश नहीं दिया। पवित्र बाईबल उत्पत्ति विषय में सर्व प्राणियों के खाने के विषय में पूर्ण परमात्मा का प्रथम तथा अन्तिम आदेश है कि मनुष्यों के लिए फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए हैं जो तुम्हारे खाने के लिए हैं तथा अन्य प्राणियों को जिनमें जीवन के प्राण हैं उनके लिए छोटे-छोटे पेड़ अर्थात् घास, झाड़ियाँ तथा बिना फल वाले पेड़ आदि खाने को दिए हैं। इसके बाद पूर्ण प्रभु का आदेश न पवित्र बाईबल में है तथा न किसी कतेब (तौरत, इंजिल, जुबुर तथा र्कुआन शरीफ) में है। इन कतेबों में ब्रह्म, उसके फरिश्तों तथा पित्तरों व प्रेतों का मिला-जुला आदेश रूप ज्ञान है।

(घ). क्या बाबा आदम से पहले भी सृष्टि थी ?

उत्तर - हाँ, सूर्यवंश में राजा नाभिराज हुआ। उसका पुत्र राजा ऋषभदेव हुआ जो जैन धर्म का प्रवर्तक तथा प्रथम तीरथंकर माना जाता है। वही ऋषभदेव ही बाबा आदम हुआ, यह विवरण जैन धर्म की पुस्तक ‘‘आओ जैन धर्म को जाने‘‘ के पृष्ठ 154 पर लिखा है।

इससे स्पष्ट है कि बाबा आदम से भी पूर्व सृष्टि थी। पृथ्वी का अधिक क्षेत्र निर्जन था। एक दूसरे क्षेत्र के व्यक्ति भी आपस में नहीं जानते थे कि कौन कहाँ रहता है। ऐसे स्थान पर ब्रह्म ने फिर से मनुष्य आदि की सृष्टि की। हजरत आदम तथा हव्वा की उत्पत्ति ऐसे स्थान पर की जो अन्य व्यक्तियों से कटा हुआ था। काल के पुत्र ब्रह्मा के लोक से यह पुण्यात्मा (बाबा आदम) अपना कर्म संस्कार भोगने आया था। फिर शास्त्र अनुकूल साधना न मिलने के कारण पितर योनी को प्राप्त होकर पितर लोक में चला गया। बाबा आदम से पूर्व फरिश्ते थे। पवित्र बाईबल ग्रन्थ में लिखा है।

(ड़). यदि अल्लाह का आदेश मनुष्यों को माँस न खाने का है तो बाईबल तथा र्कुआन शरीफ में कैसे लिखा गया ?

उत्तर - पवित्र बाईबल में उत्पत्ति विषय में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा ने छः दिन में सृष्टि रचकर सातवें दिन विश्राम किया। उसके बाद बाबा आदम तथा अन्य नबियों को अव्यक्त अल्लाह (काल) के फरिश्ते तथा पितर आदि ने अपने आदेश दिए हैं। जो बाद में र्कुआन शरीफ तथा बाईबल में लिखे गए हैं।

(च). अव्यक्त प्रभु काल ने यह सर्व वास्तविक ज्ञान छुपाया है तो पूर्ण परमात्मा का संकेत किसलिए किया ?

उत्तर - ज्योति निरंजन(अव्यक्त माना जाने वाला प्रभु) पूर्ण परमात्मा के डर से यह नहीं छुपा सकता कि पूर्ण परमात्मा कोई अन्य है। यह पूर्ण प्रभु की वास्तविक पूजा की विधि से अपरिचित है। इसलिए यह केवल अपनी साधना का ज्ञान ही प्रदान करता है तथा महिमा गाता है पूर्ण प्रभु की भी।

सिकंदर ने सोचा कि ऐसे भगवान को दिल्ली में ले चलता हूँ और हो सकता है वहाँ के व्यक्ति भी इस परमात्मा के चरणों में आकर एक हो जाऐं। यह हिन्दू और मुसलमान का झगड़ा समाप्त हो जाऐं। कबीर साहेब के विचार कोई सुनेगा तो उसका भी उद्धार होगा। दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी ने प्रार्थना की कि हे ‘‘सतगुरुदेव एक बार हमारे साथ दिल्ली चलने की कृपा करो।’’ कबीर साहेब ने सिकंदर लौधी से कहा कि पहले आप मेरे से उपदेश लो फिर आपके साथ चल सकता हूँ। ऐसे नहीं जाऊँगा। सिकंदर ने कहा कि दाता जैसे आप कहोगे वैसे ही करूँगा। कबीर साहेब ने कहा कि एक तो हिन्दू से मुसलमान नहीं बनाएगा। सिकंदर ने कहा कि नहीं बनाऊँगा। कोई जीव हिंसा नहीं करवाएगा। सिकंदर ने कहा प्रभु मैं जीव हिंसा नहीं करूंगा तथा न किसी को जीव हिंसा करने के लिए कहूँगा। परन्तु ये मुल्ला तथा काजी मेरे बस से बाहर हैं। कबीर साहेब ने कहा ठीक है आप अपने मुख से नहीं कहोगे। सिकंदर ने कहा कि ठीक है दाता अर्थात् सारे नियम बता दिए और सिकंदर ने सारे स्वीकार कर लिए। परमश्ेवर कबीर साहेब जी से दीक्षा ग्रहण कर ली तथा सर्व नियमों को आजीवन पालन करने का प्रण किया।

तब सतगुरुदेव सिकंदर लौधी को प्रथम मंत्र प्रदान करके वहाँ से उसके साथ दिल्ली को रवाना हुए। बादशाह सिकंदर ने परमेश्वर कबीर साहेब को अपने साथ हाथी पर अम्बारी में बैठाया। उसमें राजा के अतिरिक्त कोई बैठ नहीं सकता था। परन्तु सिकंदर को भगवान सामने दिखाई दिया जिसने उसकी असाध्य बिमारी से रक्षा की उसके सामने मुर्दा स्वामी रामानन्द जीवित कर दिया। जब सिकंदर लौधी के धार्मिक गुरु शेखतकी को पता चला कि राजा स्वस्थ हो गया और इसके सामने कबीर परमेश्वर ने स्वामी रामानन्द जी का कटा शीश जोड़कर जीवित कर दिया। उसने सोचा कि अब मेरे नम्बर कटेंगे अर्थात् मेरी महिमा कम हो जाएगी और मेरी कमाई तथा प्रभुता गई। शेखतकी को साहेब कबीर से इष्र्या हो गई। वह विचार करने लगा कि किसी प्रकार इसको नीचा दिखा दूं और सिकंदर के हृदय से यह उतर जाए और मेरी प्रभुता बनी रह जाए। सभी वहाँ से दिल्ली के लिए चल पड़े। रास्ते में रात्रि में एक दरिया पर रूक गए। सोचा कि रात्रि में विश्राम करेंगे। सुबह चलने का इरादा करके वहाँ पर पड़ाव लगा दिया।

पाठकों से निवेदन है कि अज्ञान के कारण ज्ञानहीन कबीर पंथियों ने वर्तमान कबीर सागर के ज्ञान का अपनी अज्ञानता के कारण नाश कर रखा है। कबीर सागर में ‘‘मोहम्मद बोध‘‘ पृष्ठ 15 (735) पर लिखा है कि साखी में लिखा है कि कबीर साहेब ने मोहम्मद से कहा कि तुम तो जाओ, मक्का में जाओ, मैं काशी शहर में जाकर रामानंद को गुरू करता हूँ।

साखी:- हमतो काशी को जात हैं, तुम मक्के अस्थान।
हम गुरू रामानन्द करें, तुम देओ जगत फरमान।।

विचार करें:- हजरत मोहम्मद जी का जन्म 603 ई. में हुआ। वे 63 वर्ष की आयु में रोग के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए थे। परमेश्वर कबीर जी काशी में 1398 ई. में प्रकट हुए। सन् 1403 ई. में 5 वर्ष की आयु में रामानंद जी से दीक्षा लेने की लीला की थी। झूठे व्यक्तियों ने कबीर जी को मोहम्मद जी का समकालीन बना दिया। मुहम्मद जी को परमेश्वर सत्यलोक से आकर मिले थे जैसे संत गरीबदास जी को मिले थे।

मुसलमानों का सिद्धांत गलत सिद्ध हुआ।

मुसलमान मानते हैं कि बाबा आदम जी प्रथम नबी थे। उनसे लेकर हजरत ईशा जी तक सब मृत्यु के उपरांत कब्रों में दबाए गए हैं। वे सब तब तक कब्रों में रहेंगे, जब तक कयामत (प्रलय) नहीं आती। प्रलय आने में अभी अरबों वर्ष शेष हैं। तब तक जन्नत (स्वर्ग) तथा दोजख (नरक) खाली पड़े हैं। हजरत मोहम्मद मृत्यु के निकट आए तो रात्रि में उठकर कब्रों में गए। वहाँ उन कब्रों में दबे मुर्दों से कहा कि हे कब्र वालो! तुम्हें अल्लाह सलामत रखे।

इससे भी स्पष्ट है कि मुसलमान मानते हैं कि मृत्यु के उपरांत सब कब्रों में दबाए जाते हैं और कयामत तक कब्रों में रहते हैं। आप जी ने ऊपर पढ़ा कि हजरत मोहम्मद जी जब बुराक पर बैठकर ऊपर गए तो जन्नत में हजरत आदम की अच्छी संतान थी जिनको देखकर बाबा आदम हँस रहे थे। बांई और नरक में निकम्मी संतान थी जिनको देखकर रो रहे थे। हजरत मोहम्मद जी ने ऊपर पूर्व वाले सब नबियों को देखा। यदि मुसलमान धर्म का यह सिद्धांत सत्य है कि कयामत तक सब मानव तथा पैगंबर कब्रों में रहते हैं तो हजरत मोहम्मद जी को जन्नत में न बाबा आदम मिलते, न उनकी अच्छी-बुरी संतान स्वर्ग-नरक में मिलती और न बाबा आदम से लेकर ईशा तक नबियों की मण्डली ऊपर के आसमानों में मिलती। जन्नत (स्वर्ग) तथा दोजख (नरक) खाली पड़े होने चाहिएं थे। इससे मुसलमानों का यह कहना गलत सिद्ध हुआ कि कयामत तक प्रत्येक मानव मृत्यु के उपरांत कब्रों में दबे रहते हैं।

जन्नत उसको कहते हैं जहाँ कोई कष्ट ना हो। वह जन्नत (स्वर्ग) सत्य लोक में है। वास्तव में वह स्वर्ग है। काल लोक के स्वर्ग पूर्ण सुखदायक नहीं हैं।

काल ब्रह्म का स्वर्ग (जन्नत) भी कष्टदायक

आप जी ने पढ़ा कि बाबा आदम जो ईसाई धर्म तथा मुसलमान धर्म के प्रथम पैगंबर हैं। वे साधना करके जिस स्थान पर गए। वहाँ भी सुखी नहीं, कभी हँस रहे थे तो कभी रो रहे थे। अन्य भी उसी स्थान को जन्नत मानकर भक्ति करके प्राप्त करेंगे। यही दशा वहाँ पर उनकी होगी। यदि यह बात सत्य मानें कि कयामत तक कब्रों में रहना पड़ता है तो कयामत तो अभी अरबों वर्षों के पश्चात् आएगी, तब तक भूखे-प्यासे कब्रों में तड़फते रहेंगे। फिर वे उस जन्नत को प्राप्त करेंगे जिसको बाबा आदम प्राप्त करके अशान्त हैं क्योंकि वे वहाँ पर रो रहे हैं और हँस रहे हैं। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को यह निष्कर्ष बताया तो धर्मदास जी परमेश्वर कबीर जी के चरणों में गिरकर दण्डवत् प्रणाम करके रोने लगे। कहा कि हे बन्दी छोड़! आँखें खोल दी। काल का भयंकर जाल है। आपके सब बच्चे हैं। हे परमात्मा! क्या आप हजरत मोहम्मद जी को मिले थे? क्या वे आपकी शरण में आए थे? कृपा मेरे मन में यह जानने की प्रबल इच्छा है। उत्तर = ऊपर लिख दिया है।

कृपया पढ़ें कबीर सागर के अध्याय ‘‘मुहम्मद बोध‘‘ से वाणी:-

धर्मदास वचन

साखी - धर्मदास बीनती करे, कृपा करो गुरूदेव।
नबी मुहम्मद जस भये, सोसब कहियों भेव।।

कबीर वचन

धर्मदास तुम पूछो भल बानी। सो सब कथा कहूँ सहिदानी।।
मिले हम मुहम्मद कूँ जाई। सलाम वालेकम कह सुनाई।।
मुहम्मद बोले वालेकम सलामा। हमें बताओ गाम रूनामा।।
साखी - कहाँ ते आये पीर तुम, क्यों कर किया पयान।
कौन शक्सका हुक्म है, किसका है फरमान।।

मुहम्मद वचन

रमैनी

पीर मुहम्मद सखुन जो खोला। अल्ला हमसे परदै बोला।।
हम अहदी अल्ला फरमाना। वतन लाहूत मोर अस्थाना।।
उन भेजे रूह बारह हजारा। उम्मत के हम हैं सरदारा।।
तिस कारण जो हम चलि आये। सोवत थे सब जीव जगाये।।
जीव ख्वाब में परो भुलाये। तिस कारन फरमान ले आये।।
तमु बूझो सो कौन हो भाई। अपनो इस्म कहो समुझाई।।
साखी - दूर की बाते जो करौ, करते रोजा नमाज।।
सो पहुँचे लाहूत को, खोवे कुल की लाज।।

कबीर वचन

कहैं कबीर सुनो हो पीर। तुम लाहूत करो तागीरा।।
तुम भूले सो मरम न पाया। दे फरमान तुम्हें भरमाया।।
फिर फिर आव फिर फिर जाई। बद अमली किसने फरमाई।।
लाहूत मुकाम बीच को भाई। बिन तहकीक असल ठहराई।।
तुम ऐसे उनके बहुतेरे। लै फरमान जाव तुम डेरे।।
साखी - खोजत खोजत खोजियाँ, हुवा सो गूना गून।
खोजत खोजत ना मिला, तब हार कहा बेचून।।
बेचूँन जग राँचिया, साई नूर निनार।
आखिर करे वक्त में, किसकी करो दिदार।।

रमैनी

तुम लाहूंत रचे हो भाई। अगम गम्य तुम कैसे पाई।।
यह तो एक आदि विसरामा। आगे पाँच आदि निज धामा।।
तहाँ ते हम फरमान ले आये। सब बदफेल को अमल मिटाये।।
उन फरमान जो हमको दीना। तिनका नाम बेचून तुम लीना।।
साखी - साहब का घर दूर है, जासु असल फरमान।
उनको कहो जो पीर तुम, सोइ अमर अस्थान।।

मुहम्मद वचन

कहै मुहम्मद सुनो कबीरा। तुम कैसे पायो अस्थीरा।।
लाहूत मेटि जो अगम बतायो। खुद खुदाय हमहूँ नहिं पायो।।
हम जानैं खुद आपै आही। तुम कुदरत कर थापो ताही।।
हम तो अर्श हाजिरी आयो। तुम तो कुदरत से ठहराये।।
तुम्हरे कहे भरम मोहि आयो। खुद खुदाय तुम दूर बतायो।।
आप सुनाओ खुदकी बानी। आलम दुनियाँ कहो बखानी।।
लाहूत मुकाम हम निजकर जाना। सो तो तुम कुदरत कर ठाना।।
हलकी मुलकी बासरी भाई। तीन हुक्म अल्ला फरमाई।।
साखी - साई मुरशिद पीर है, साँचा जिस फरमान।
हलकी मुलकी बासरी, तीन हुकुम कर मान।।

कबीर वचन

सुन मुहम्मद कहूं खुदवाणी। खुद खोदाय की कहूँ निशानी।।
कादिर थे तब कुदरत नाहीं। कुदरत थी कादिर के माहीं।।
ख्वार सभी को चीन्हो भाई। असल रूह को देउँ बताई।।
असल रूह की दीदार जो पावे। पावे निज मुसलमान कहावे।।
हो आवाज जहां परदा पोशी। है वह मर्द कि है वह जोशी।।
जब लग तख्त नजर नहीं आवे। दिल विश्वास कौन विधि पावे।।
जब खुद की खबर न पावे। तब लग कुदरत भ्रम ठहरावे।।
हाल माशूक नजर जो आवै। एक निगाह दीदार जो पावै।।
जो तुम कहा हमारा मानो। तो हम तुमते निर्णय ठानो।।
साखी - यह प्रपंच बेचून का, तुमते कहा न भेव।।
आप गुप्त होइ बैठा, तुम चार करत हो सेव।।

मुहम्मद बोध

कहैं मुहम्मद सुन खुद अहदी। इल्म लद्दुनी कहु बुनियादी।।
जब नहिं पिण्ड ब्रह्माण्ड अस्थूला। तब ना हतो सृष्टि को मूला।।
तादिन की कहिय उपतानी। आदि अंत और मध्य निशानी।।

साखी - बुजरूग हकीकत सब कहो, किस विधि भया प्रकाश।
जब हम जाने आदि को, तो हमहूँ बाँधे आश।।

कबीर वचन

सुनो मुहम्मद सांचे पीरा। समरथ हुकुम खुद आदि कबीरा।।
अब हम कहें सुनो चितलायी। आदि अन्त सब कहों बुझायी।।
प्रथम समरथ आदि अकेला। उनके संग हता नहिं चेला।।
साखी - वाहिदन थे तब आप में, सकल हतो तेहि माँह।
ज्यौं तरूवर के बीज में, पुष्प पात फल छाँह।।

चौपाई

निरंजन भये राज अधिकारी। तिनके चार अंश सेवकारी।।
चार ज्ञानते चारो वेदा। तिनते चारो भये कतेबा।।
मूल कुरान वेद की वानी। सो कुरान तुम जग में आनी।।
हक्क कुरान जो तुमको दीना। हद हुक्म तुम आपन कीना।।
चार कतेब के चारों अंशा। तिनते कहो भिन्न-भिन्न बंशा।।
वेद पढावत ब्रह्मा आये। ऋग वेद को नाम लखाये।।
दूसर यजुरवेदकी वानी। भक्ति ज्ञान सो कीन बखानी।।
तीसर सामवेद की वानी। यज्ञ होम तिन कीन बखानी।।
चौथ अथर्बन गुप्त छपाये। तौन हुक्म तुम जगमें आये।।
ऐकै मूल कुरान में चारी। चार बीर तुम हो सरदारी।।
जब्बूर किताब दाऊद ने पाई। नासूत मोकाम रहै ठहराई।।
तौरेत कीताब मूसाने पाई। मलकूत मोकाम रहै ठहराई।।
इंजील किताब ईशा ने पाई। जबरूत मोकाम रहै ठहराई।।
फुरकान किताब नबी तुम पाई। लाहूत मोकाम रहै लौलाई।।
कुरान बेहद को मरम न पावै। बिन देखे विश्वास क्या आवै।।
चार मोकाम किताब है चारी। पंचयें नाम अचिंत सँवारी।।
तहँते आइ रूह बारह हजारी। तहां अचिंत गुप्त व्योहारी।।
साखी - पीर औलिया थाकिया, यह सब उरले पीर।।
समरथ का घर दूर है, तिनको खोजो बीर।।

मारफत चौपाई

ओवल मोकाम नासूत ठेकाना। दूजा मोकाम मलकूत जो जाना।।
सेउम मोकाम जबरूत ठेकाना। चहारूम मोकाम लाहूत बखाना।।
पंचये मोकाम हाहूत अस्थाना। छठे मोकाम सोहं जो माना।।
हफतुम मोकाम बानी अस्थाना। अठयें मोकाम अंकूर ठेकाना।।
नवयें मुकाम आहूत निशानी। दसयें मोकाम पुरूष रजधानी।।

बेतुक

औवल शरी अत्।1। तरीकत् 2। हकीकत् 3। मरफत् 4। मरौवत् 5। ध्यान दोरहिअत् 6। जुलफकार चन्द्र गेटा 7। हुकुममुरतद 8। देयना कासो यही अंत् 9। सच पावे समरथ काय 10। अंकार ओंकार कलिमा नवी सचुपावै देखा हद बैहद

मुहम्मद वचन

तुम कबीर भेद अधिकाये। खुद समरथ की खबरि जो ल्याये।।
अब तुमको हम बूझैं अंतू। सो कहिये खुद अहदी संतू।।
को तुम आहु कहांते आये। क्यों तुम अपना बर्ण छिपाये।।
सात सुरति समरथ निमाई। यह अस्थान रहो की जाई।।
यती मारफत कहु दुरवेशा। हम मानैं तुमरो उपदेशा।।
सात सुरति केहि माहि समाई। जिव बोधे सो कह चलि जाई।।
समरथ गम तुमु साँच कबीरा। समरथ भेद कहो मति धीरा।।
साखी - मेरे शंका बाढिया, थाके वेद कुरान।
वाहिद कैसे पाइये, समरथ को मक्कान।।

सत्य कबीर वचन

सुनो मुहम्मद कहों बुझाई। जो खुद आदि अस्थान है भाई।।
जो जो हुकुम समरथ फरमाई। सो सो हुकुम हम आनि चलाई।।
सुर नर मुनि को टेरि सुनाये। तुमको बहुत बार समुझाये।।
तुम पर मोह क्षर ने डारा। तेहि कारण आये संसारा।।
सोलह असंख जुग जबै सिराई। सोलह असंख उत्पत्ति मिटि जाई।।
सात सुरति तब लोकहि जाई। जिव बोधो तेहि माह समाई।।
सात सुन्य तजि ते अस्थाना। ते सब मिटे होय घमसाना।।
वेद कतेव कि छोड़ो आशा। वेद कतेव में क्षर प्रकाशा।।
तीन बार तुम जग में आये। फिर फिर क्षर ने भरमाये।।
क्षर चीन्हिके छोडो भाई। तीन अंश क्षर निरमाई।।
ब्रह्मादिका सृष्टि आपको कीना। जीव वृष्टि तीरथ व्रत दीना।।
माया वृष्टि ईश्वरी जानो। सबमें आतम एक समानो।।
साखी-खोजो खुद समरत्थको, जिन किया सब फरमान।
पीर मुहम्मद तहँ चलो, सोई अमर अस्थान।।

मुहम्मद वचन

पीर मुहम्मद मुख तब मोरा। कछु नहिं चलै तुम्हारी जोरा।।
क्षर हुक्म को मेटनहारा। चार वेद जिन कीन पसारा।।

कबीर वचन

सुनिये सखुन मुहम्मद पीरा। हम खुद अहदी आदि कबीरा।।
मेटों क्षरको बिस्तारा। मेटो निरंजन सकल पसारा।।
मेटो अचिंतकी रजधानी। मेटो ब्रह्मा वेद निशानी।।
चौदह जमको बांधि नचावों। मृतु अंधा मगहर ले आवों।।
धर्मरायते झगर पसारा। निरंजन बांधि रसातल डारा।।
वे कतेब को अमल मिटावों। घर घर सार शब्द फैलावों।।
समरथ हुक्म चलै सब माही। ब्यापै सत्य असत्य उठि जाही।।

मुहम्मद वचन

पीर मुहम्मद बोले बानी। अगम भेद काहू नहिं जानी।।
सुनाकान नहिं आखिन देखा। बिन देखे को करे विवेखा।।
जो नहिं देखो अपने नैना। कैसे मानो गुरूको बैना।।
जो तुम खुद अहदी ह्नै आये। हुक्म हजूर फरमान ले आये।।
जौन राह से तुम चलि आवो। सोई राह मोकहँ बतलावो।।
हँसन को अस्थान चिन्हावो। समरथ को मोहि लोक देखावो।।
साखी - हंसन को अस्थान लखि, तब मानुँ फरमान।।
जो समरथ को हुक्म है, सो मेरे परवान्।।

कबीर वचन

सुनो मुहम्मद कहों बुझाई। साहेब तुमको देउँ बताई।।
चलै सैल को दोनों पीरा। एक मुहम्मद एक कबीरा।।

(नासूत) मोकाम 1

भूमि से चले जहाँ पहुँचे जाई। मानसरोवर तहां कहाई।।
तहँ नासूत आहि मोकामा। नबी कबीर पहुँच तेहि धामा।।
तहँ दाऊद पयंबर होई। जब्बूर किताब पढे तहँ सोई।।
तहाँ सलामालेक सोई कीना। दस्तावोस उनहु उठि लीना।।

(मलकूत) मोकाम 2

तहवाँते पुनि कीन पयाना। दूसरा मुकाम वैकुंठ प्रमाना।।
तहवाँ पहुँच बैठे ऋषि दुर्बासा। देव सबै बैठे तेहि पासा।।
वह वैकुंठ विष्णु अस्थाना। मलकूत मोकाम मूसाको जाना।।
मूसा पैगम्बर पढै किताबा। उसका नाम तौरेत किताबा।।
सलामालेक तहाँ हम कीना। दस्ताबोस उनहु उठि लीना।।

(जबरूत) मोकाम 3

वैकुण्ठ ते आगे लायो डोरी। सुमेरते सुन्य अठारह करोरी।।
येतो अधर सुन्य अस्थाना। जबरूत मोकाम ईसाको जाना।।
ईसा पैगम्बर पढै किताबा। उसका नाम इंजील किताबा।।
सलामालेक तहाँ हम कीना। दस्ता बोस उनहु उठि लीना।।
तहँवा बैठि विस्वंभर राई। वही पीर तो वही खुदाई।।
यह विष्णुपुरी है भाई। यामें भी एक बैकुण्ठ बनाई।।
विष्णु है यहाँ का प्रधाना। सुन मुहम्मद ज्ञान विज्ञाना।।
उहँते अधर सून्य है भाई। ताकी शोभा कही न जाई।।

(लाहूत) मोकाम 4

महाशून्यको लागी डोरी। ग्यारह पालँग तहाँ ते सोरी।।
लाहूत मोकाम कहावै सोई। जो देखे बहुतै सुख होई।।
रह महादेव पार्बति संगा। लाहुत मुकाम देख मन चंगा।।
यह मुहम्मद तुम्हरो डेरा। गण गंधर्व सब यहाँ चेरा।।
मुस्तफा पैगंबर बैठे तहाँ। फुरकान किताब पढत थे जहाँ।।
सलामालेक तहाँ हम कीना। दस्ताबोस उनहु उठि लीना।।
देखत हौ मुहम्मद अस्थाना। तुम बेचून कहो यही ठेकाना।।
सब फिरिश्ते सलामालेक कीना। तब हम आगे का पग दीना।।

(हाहूत) मोकाम 5

तहँते चले अचिंत ठेकाना। एक असंख्य सुन्य परमाना।।
ब्रह्मापुरी है हाहूत मोकामा। आदम का यहाँ विश्रामा।।
हाहूत मोकाम को वही ठेकाना। आगे है सोहं बंधाना।।

(बाहूत) मोकाम 6

तीन असंख्य शून्य परमानी। बाहूत मोकाम सो कहो बखानी।।
यह देवी का अस्थाना। गुप्तभेद कोई ना जाना।।
नवी कबीर चले तेहि आगे। मूल सुरति बैठे अनुरागे।।

(फाहूत) मोकाम 7

पांच असंख सुन्न विचआही। सप्तम मोकाम कहत है ताही।।
संगम धाम दुर्गा के आगे। यको तुम फाहूत अनुरागे।।
फाहूत मोकाम तोहे बताया। भिन्न भेद कह समझाया।।

(राहूत) मोकाम 8

इच्छा सुरति के पहुँचे द्वीपा। चार असंख है लोक समीपा।।
सतगुरू रूप काल दयाला। एक बुगा और एक काला।।
ताको नाम राहूत मोकामा। नबी कबीर पहुँचे तेहि ठामा।।

(आहूत) मोकाम 9

तहाँते सहज द्वीप परमाना। दोय असंख तहाँते जाना।।
मुकाम निरंजन धामा। आप गुप्त ज्योति प्रगटाना।।
ताहि मोकाम नाम आहूता। सोभा ताकी देख बहूता।।

(जाहूत) मोकाम 10

साखी - पहुँचे जायके लोक जहँ, सन्त असंख दस लाख।।
अक्षर धाम जाहूत मुकामा। शंख इक्कीस लोक अकाना।।
सो मोकाम जाहूत का, दस मोकाम यह भाख।।

चौपाई

सलामवालेकम तहाँ हम कीना। दस्ताबोस उनहु उठिलीना।।
तहँते अमरलोकको छोरा। नबी कवीर पहुँच तेहि ठौरा।।
अमरलोक के हंस सब आये। तिनकी सोभा कही न जाये।।
भरि भरि अंक मिले तहँ आये। देखि मुहम्मद रहे भुलाये।।
सब मिलि हंस गये पुनि तहँवा। साहेब तखत पै बैठे जहँवा।।
जगर मगर छतर उजियारा। आम धनी का कहो बिहारा।।
असंख भानु पुरूष उजियारा। अमरलोक को कहो विस्तारा।।
सकल हंस तहँ दरशन पाई। तिनकी सोभा बरनि न जाई।।
तहँवा जाय बंदगी कीना। नबी भये जो बहुत अधीना।।

मुहम्मद वचन

चूक हमार बकस कर दीजै। जो तुम कहो सोई हम कीजै।।

पुरूष वचन

कहु मुक्तामनि बेगि तुम आये। दूसर कौन सँग ले आये।।

दश मुकामी रेखता

चला जब लोकको शाक सब त्यागिया हंसको रूप सतगुरू वनायी। भृग ज्यों कीट को पलटि भृग किया आप समर दै ले उड़ायी। छोडि नासूत मलकूतको पहुंचिया विष्णु की ठाकुरी दीख जायी। इन्द्र कुबेर जहाँ रंभको नृत्य है देव तेतीस कोटि रहायी।।1।। छाड़ि वैकुंठ को हंस आगे चला शुन्य में ज्योति जगमग गायी। ज्योति परकाश में निरखि निस्तत्त्वको आप निर्भय हुआ भय मिटायी। अलख निर्गुण जेहि वेद स्तुति करै तिनहूं देव को हैं पिताई। भगवान तिनके परे श्वेत मूरति धरे भागको आन तिनको रहायी।।2।। चार मुक्काम पर खंड सोरह कहै अंडको छोर ह्यां ते रहायी। अंड के परे स्थान अचिंत को निरखिया हंस जब उहां जायी। सहस औ द्वादशै रूह है स में करत कल्लोल अनहद बजायी। तासुके बदनकी कौन महिमा कहौं भासती देह अति नूर छायी।।3।। महल कंचन बने मणिक तामें जडे़ बैठ तहँ कलश अखंड छाजै। अचिंत के परे स्थान सोहंका हंस छत्तीस तहँवा विराजै। नूरका महल और नूरकी भूमि है तहां आनन्द सो द्वन्द्व भाजै। करत कल्लोल बहुत भांति से संग यक हंस सोहंग के समाजै।।4।। हंस जब जात षट चक्रको वेधि के सातमुक्काम में नजर फेरा। सोहंग के परे सुरति इच्छा कही सहसवामन जहँ हंस हेरा। रूपकी राशिते रूप उनको बना नहीं उपमा इन्दु जौनिवेरा। सुरति से भेटिकै शब्द को टेकि चढ़ि मुक्काम अंकूर केरा।।5।। शून्य के बीच में बिमल बैकुण्ठ जहाँ सहज अस्थान है गैब केरा। नवो मुक्काम यह हंस जब पहुंचिया पलक बिलंब ह्नां कियो डेरा। तहाँसे डोरि मकरतार ज्यों लागिया ताहि चढि हंस गो दै दरेरा।। भये आनन्द से फंद सब छोड़िया पहुँचिया जहाँ सत्यलोक मेरा।।6।। हंसिनी हंस सब गाय बजायकै साजिकै कलश मोहे लेन आये। युगन युग बीछुरे मिले तुम आहकै प्रेम करि अंगसो अंग लाये। पुरूष ने दर्श जब दीन्हिया हंसको बहु जनमकी तब नशाये। पलटिकै रूप जब एकसे कीन्हिया मनहंु तब भानु षोडश उगाये।।7।। पुहुप के द्वीप पीयूष भोजन करै शब्द की देह जब हंस पायी पुहुप के सेहरा हंस औ हंसिनी सच्चिदानन्द शिर छत्रछायी। दिपैं बहु दामिनी दमक बहु भांति की जहाँ घन शब्द को घमंड लायी। लगे जहाँ वरषने गरज घन घोरिकै उठत तहँ शब्द धुनि अति सोहायी।।8।। सुन सोहं हंस तहँ यूत्थके यूत्थ ह्नै एकही नूर यक रंग रागै। करत बिहार मन भामिनी मुक्ति में कर्म औ भर्म सब दूरि भागै। रंक और भूप कोइ परखि आवै नहीं करत कल्लोल बहु भाँति पागे। काम औ क्रोध मद लोभ अभिमान सब छाँड़ि पाखण्ड सत शब्द लागे।।9।। पुरूष के बदन की कौन महिमा कहौं जगत् में ऊपमांय कछु नाहिं पायी। चन्द्र औ सूर गण ज्योति लागै नहीं एकही नक्ख परकाश भाई। पान परवान जिन बंशका पाइया पहुंचिया पुरूष के लोक जायी। कहैं कब्बीर यहि भांति सो पाइहौ सत्य की राह सो प्रकट गायी।।10।।

{यही प्रकरण अध्याय ज्ञान प्रकाश के पृष्ठ 57-58 पर है तथा अमर मूल के पृष्ठ 202 और ज्ञान स्थिति बोध के पृष्ठ 83 पर परमेश्वर के सब अंगों का वर्णन है। कण्ठ, कान, हाथ, भाल यानि मस्तक, सिर, आँख, गर्दन (ग्रीव), कपोल (होठ), मुख, भुजा, कटि (कमर), नाभि, पिंडी, जाँघ, नख (नाखून), सिख (चोटी यानि सिर का ऊपर वाला भाग) सब वर्णन है।}