कबीर सागर एक विस्तृत और गहन आध्यात्मिक ग्रंथ है, जिसमें परमेश्वर कविर देव (संत कबीर) द्वारा प्रकट किया गया तत्वज्ञान संकलित है। इसे उनकी शिक्षाओं, संवादों और आध्यात्मिक रहस्यों का सर्वोच्च संग्रह माना जाता है, जो परमात्मा, सृष्टि और मोक्ष (मुक्ति) के मार्ग को स्पष्ट रूप से समझाता है। अन्य धार्मिक ग्रंथों की तुलना में, जो काल के प्रभाव में आ चुके हैं, कबीर सागर शुद्ध और अपरिवर्तित दिव्य ज्ञान प्रदान करता है और अंधविश्वासों व अधूरे आध्यात्मिक मार्गों की सीमाओं को उजागर करता है।
यह ग्रंथ विभिन्न खंडों में विभाजित है और यह माना जाता है कि इसे उनके शिष्य धर्मदास जी ने स्वयं परमेश्वर कबीर साहिब के मार्गदर्शन में लिखा। इसमें कबीर साहिब और विभिन्न धार्मिक व्यक्तित्वों के बीच हुए संवाद शामिल हैं, जिनमें वे धार्मिक भ्रांतियों को दूर कर वेद, गीता, कुरान और बाइबिल जैसे शास्त्रों में छिपे हुए रहस्यों को प्रकट करते हैं।
कबीर सागर में सतलोक (शाश्वत दिव्य लोक), काल के छल, सच्चे भक्ति मार्ग और तत्वदर्शी संत की पहचान को भी विस्तार से समझाया गया है, जिसे स्वयं परमात्मा हर युग में नियुक्त करते हैं ताकि तत्वज्ञान का प्रचार हो सके। यह ग्रंथ सच्चे साधकों के लिए एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक है, जो जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर सतलोक में शाश्वत शांति प्राप्त करना चाहते हैं और परमेश्वर कविर देव द्वारा बताए गए सत्य भक्ति मार्ग का अनुसरण करने के इच्छुक हैं।
निवेदन:- पवित्र कबीर सागर जो वर्तमान में हमें प्राप्त है, उसको कबीर पंथी भारत पथिक स्वामी युगलानंद (बिहारी) द्वारा परिष्कृत यानि संशोधित किया गया है। कबीर सागर के अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ की प्रस्तावना में तथा ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 37 के नीचे संशोधनकर्ता की टिप्पणी में लिखा है कि ‘‘अनुराग सागर‘‘ की मेरे पास 46 हस्तलिखित प्रतियाँ रखी हैं जिनमें आपस में बहुत भिन्नता है। कोई भी एक-दूसरे से मेल नहीं खाती। सबसे निष्कर्ष निकालकर मैं यह ग्रन्थ ‘‘कबीर सागर‘‘ छपवा रहा हूँ। सन् 01-04-1914 (वैशाख बदी 8 विक्रमी संवत् 1971) में यह कबीर सागर छपा है।
अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 37 के नीचे की टिप्पणी में लिखा है कि प्रत्येक प्रति के लेखक साहेबान ने अपनी महिमा मंडन के लिए ग्रन्थों में अपनी बुद्धि के अनुसार परिवर्तन किया है। जिस कारण से कबीर पंथ के ग्रन्थों की दुर्दशा हुई है। मैंने (स्वामी युगलानन्द जी ने) बहुत परिश्रम करके यह कबीर सागर संशोधित किया है। जो वर्तमान में छपी है, वह श्री उग्रनाम साहेब के पास जो प्रति थी, उसी को छपवाया है यानि सन् 01.04.1914 को छपा है।
कबीर सागर में ज्ञानहीन महंतों ने कुछ मिलावट या काँट-छाँट की है।
उपरोक्त प्रकरण से सिद्ध है कि कबीर सागर में ज्ञानहीन महंतों ने कुछ मिलावट या काँट-छाँट की है। वह उनका अपना अज्ञान अनुभव था। परंतु ‘‘सागर‘‘ होने के कारण कबीर जी के ज्ञान को समाप्त नहीं कर पाए। बीच-बीच में तथा कहीं पूरे अध्याय में सच्चाई शेष है। उसकी सत्यता संत गरीबदास जी गाँव-छुड़ानी (जिला-झज्जर, हरियाणा) वाले के ‘सत्य-ग्रन्थ‘ से होती है जिसमें कोई काँट-छाँट या मिलावट नहीं है। अपने तत्त्वज्ञान को पुनः मानव समाज को प्रदान करने के लिए परमेश्वर कबीर जी ने अपनी प्यारी आत्मा संत गरीबदास जी को संत धर्मदास जी की तरह सत्यलोक के दर्शन करवाकर उनमें यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान भर दिया था जो संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी व उनकी संरचना तथा सत्यलोक को आँखों देखकर गवाह (witness) बनकर अमृतवाणी बोलकर लिखवाया है जो दादू पंथी श्री गोपाल दास जी ने लिखा था। जिसकी हस्तलिखित काॅपी भी हमारे पास उपलब्ध है तथा प्रैस द्वारा छपा हुआ ग्रन्थ भी है। उससे तुलना करके जो प्रकरण कबीर सागर में मिलता है। वह मैंने सत्य माना है। उसी को आधार बनाकर सत्संग करता हूँ तथा पुस्तकें भी बनाई हैं। कबीर सागर के सरलार्थ में भी यही आधार माना है। जहाँ-जहाँ कबीर सागर में मिलावट की गई है, उसको पुराने कबीर सागर तथा उपरोक्त प्रमाणों से ठीक किया है।
कबीर सागर के प्रथम अध्याय का नाम है ‘‘ज्ञान सागर‘‘:-
वास्तव में कबीर पंथियों ने एक ही अध्याय के कई अध्याय बनाकर भिन्न-भिन्न नाम रखकर अपनी-अपनी बुद्धि से अड़ंगा कर रखा है। वर्तमान कबीर सागर में कुल 40 अध्याय हैं। जिनके नाम हैं:-
सरलार्थ कर्ता
(संत) रामपाल दास
सतलोक आश्रम बरवाला
जिला-हिसार, प्रान्त-हरियाणा (भारत)
पवित्र कबीर सागर का ज्ञान परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी ने अपनी प्रिय आत्मा धर्मदास जी सेठ को बताया जो बाद में धर्मदास जी ने लिखा। पवित्र कबीर सागर के ज्ञान का नाश नासमझ कबीर पंथी नकली आचार्यों ने कर रखा है जो आप जी ने इस ग्रन्थ के पूर्व में कबीर सागर के संशोधनकर्ता श्री युगलानंद (बिहारी) भारत पथिक कबीर पंथी द्वारा की गई अनुराग सागर की भूमिका में तथा ज्ञान प्रकाश के नीचे की गई टिप्पणी में पढ़ लिया है। इस ग्रन्थ ‘‘कबीर सागर का सरलार्थ‘‘ में यथार्थ तथा सरल ज्ञान पढ़ने को मिलेगा।
वास्तव में पूरे कबीर सागर का सारांश है ‘‘धर्मदास बोध‘‘ यानि ‘‘ज्ञान प्रकाश’’। परमात्मा ने अपने प्रिय भक्त धर्मदास जी को सत्य आध्यात्मिक ज्ञान बताया। इसलिए कबीर सागर ‘‘धर्मदास बोध‘‘ है और जिसका विस्तृत वर्णन है ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ अध्याय में जो छठा अध्याय है। सर्वप्रथम ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ से कबीर सागर सार लेता हूँ।
अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ (छठा अध्याय) का सार परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी द्वारा सेठ धर्मदास जी (नगर=बाँधवगढ़, प्रदेश=मध्यप्रदेश, भारत देश) को शरण में लेने के लिए लीला का वर्णन है। इसमें पद्य भाग में दोहों तथा चौपाईयों के रूप में वर्णन है जो जन-साधारण की समझ से परे की बात है। इसलिए इसको गद्य भाग में सरल करके लिखना वर्तमान में अति आवश्यक है।
कृप्या पढ़ें आगे संक्षिप्त तथा यथार्थ प्रमाणित आत्मा तथा परमात्मा का संवाद:-